Tuesday, December 29, 2009

साहबी संस्कृति-हिन्दी व्यंग्य कविताऐं (boss culture-hindi satire poem)

 दिन भर अपने लिए साहब शब्द सुनकर

वह रोज फूल जाते हैं।

मगर उनके ऊपर भी साहब हैं

जिनकी झिड़की पर वह झूल जाते हैं।
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नयी दुनियां में पुजने का रोग

सभी के सिर पर चढ़ा है।

कामयाबी का खिताब

नीचे से ऊपर जाता साहब की तरफ

नाकामी की लानत का आरोप

ऊपर से उतरकर नीचे खड़ा है,

भले ही सभी जगह साहब हैं

बच जाये दंड से, वही बड़ा है

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साहबी संस्कृति में डूबे लोग

आम आदमी का दर्द कब समझेंगे।

जब छोटे साहब से बड़े बनने की सीढ़ी

जिंदगी में पूरी तरह चढ़ लेंगे।
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
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Wednesday, December 23, 2009

गद्दार कदम-हिन्दी साहित्य कविता (gaddar kadam-hindi sahitya kavita)

 अपनी खुशियां मिलकर बांटते होते हम।

तब नहीं छाये होते पूरे जमाने के दिल में गम।

अब जज़्बातों के सौदागर सपने बेच रहे हैं

बाजार में लोगों के दर्द पर, करके अपनी आंखें नम।

अपने नाम के पैसों खाता देखकर,  खुश हो रहे अमीर

बढ़ते आंकड़ों में देख रहे जिंदगी का  पूरा दम।

वतन से प्यार के नाम पर कर रहे चमन से धोखा

कुचल रहे फूल सी वफा, माली के  गद्दार कदम।

नहीं सोचते जब जमाना टूट कर बिखर जायेगा

उनके घरों की तरफ भी बढ़ेंगे, कातिलों के कदम।।


 
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Saturday, December 19, 2009

कमीशन की नीति-हिन्दी साहित्य कवितायें (policy of commision-hindi sahitya kavita)

 सरकार और साहुकारों ने

इतने वर्षों से बहुत दान किया है

कि इस देश से पीढ़ियों तक

गरीबी मिट जाती।

अगर कमबख्त

यह कमीशन की रीति

दान बांटने वालों की नीति न बन जाती।

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नया बनाने के लिये

पुराना समाज टुकड़े टुकड़े

किये जा रहे हैं।

कुछ नया नहीं बन पा रहा है

इसलिये हर टुकड़े को समाज बता रहे हैं।


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Tuesday, December 08, 2009

आंसुओं का हिसाब-हिन्दी व्यंग्य कविता (ansuon ka hisab-hindi sahitya kavita)

शानदार इमारतों के नीचे

दबे पड़े हैं, बुनियाद में जो पत्थर

वह चमकदार नहीं होते।

अमीर इंसानों की दौलत के आंकड़े

खातों में लिखे होते 

पर उसको बढ़ाने वाले मेहनतकशों के

पसीने की बूंदों के हिसाब नहीं होते।

रौशनी फैली है जहां तक

वहां तक पूरा जहां चमक रहा है

उसे देखने वालों को 

अंधेरों के अहसास नहीं होते।

जितने लोग जमीन पर चलते हैं

आकाश में उतने परिंदे नहीं होते।

नजर और अहसास सभी के अलग हैं

कोई जुटा कर भी दौलत

खुशी के लिये भटकता है

जो मोहताज हैं

वह भी रुपयों के हिसाब में अटकता है

तमाशों में करते हैं

लोग अपनी दौलत बरबाद

पर नहीं कर सकते

किसी गरीब का घर आबाद

घूम रही है अमीरी जिनके चारो ओर

नहीं पाते चैन तब तक

जब तक गरीब के आंसु

गाल पर बहते नहीं होते।

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अभावों में जीते हैं जो लोग

उनके आंसुओं का हिसाब

कौन रखता है।

अमीर की तरफ ताक रहे हैं सभी

कब उसकी आंखों में दर्द दिखे

तो उसे हमदर्दी दिखायें

वही तो है जो

दर्द का रुपयों में हिसाब करता है।

 

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Friday, December 04, 2009

एक बूंद रौशनी-हिन्दी लघु कथा (ek boond roshni-hindi short story)

बड़े शहर के विशाल मकान में रहने वाला वह शख्स एक दिन बरसात के दिनों मे गांव की ओर जाने वाली पगंडडी पर पानी मे अंधेरे में कांपते हुए कदम रखता हुआ आगे बढ़ रहा था। दरअसल शाम के समय वह बस मुख्य सड़क पर उतरा था उस समय बरसात धीरे शुरु हुई थी। उसे गांव जाना था जिसका रास्ता एक पगडंडी थी। बरसात के कारण वह वहीं खड़ी एक दुकान पर कुछ देर खड़ा हो गया। जब बरसात बंद हो गयी तो उसने वहां दुकानदार गांव का रास्ता पूछा तो पगडंडी की तरफ इशारा करते हुए कहा कि‘यहां से एक मील दूर जाने पर वह गांव आ जायेगा।
वह गांव वहां से कम से कम चार किलोमीटर दूर था। इधर सूरज भी एकदम डूबने वाला था। वह जल्दी जल्दी चल पड़ा कुछ दूर जाने पर उसे कीचड़ दिखाई दी पर वह सूखी जमीन पर कदम रखता हुआ आगे बढ़ रहा था। इधर सूरज भी पूरी तरह से डूब गया। अंधेरे में उसे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। दूर दूर रौशनी भी नहीं दिख रही थी। चारों तरफ पेड़ और छोटे पहाड़ के पीछे छिपे उस गांव की तरफ जाते हुए उसका हृदय अब कांपने लगा था। अनेक जगह वह फिसला। अपने जूत भी उसे अपने हाथ में ले लिये ताकि फिसल न जाये। रास्ते में वह अनेक बार चिल्लाया-‘कोई है! कोई मेरी आवाज सुन रहा है।’
वह फिसलता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था। एक समय तो उसे लगा कि उसका अब कहीं गिरकर अंत हो जायेगा
वह अब पीछे नहीं लौट सकता था क्योंकि मुख्य सड़क बहुत दूर थी और वह आशा कर रहा था कि बहुत जल्दी गांव आ जायेगा। अब तो उसे यह भी पता नहीं चला रहा था कि गांव होगा कहां? कोई कुछ बताने वाला नहीं था।
न दिशा का ज्ञान न रास्ते का। चलते चलते अचानक वह एक झौंपड़ी के निकट पहुंच गया। वहां एक मोमबती चल रही थी। उसे देखकर उस शख्स ने राहत अनुभव की। वहां खड़े एक आदमी से उसने उस गांव का रास्ता पूछा- उस आदमी ने इशारा करके बताया और उससे कहा-‘आपके चिल्लाने की आवाज तो आ रही थी पर मेरी समझ में नहीं आ रहा था। अब गांव अधिक दूर नहीं है। बरसात बंद हो गयी है। मैं मोमबती लेकर खड़ा हूं आप निकल जाईये थोड़ी देर में आपको वहां रौशनी दिखाई देगी। बिजली नहीं भी होगी तो भी लोगों की लालटेन या मोमबतियां जलती हुई दिखाई देंगी।’
वह मोमबती लेकर खड़ा। उसकी रौशनी में उसे पूरा मार्ग दिखाई दिया। कीचड़ थी पर वहां से निकलने के लिये कुछ सूखी जमीन भी दिखाई दी। वह धीरे धीरे चलकर गांव में अपने रिश्तेदार के यहां पहुंच गया।
रिश्तेदार ने कहा-‘हमें आपके घर से फोन आया था कि आप आ रहे हैं। इतनी देर न देखकर चिंता हो रही थी। आपने हमें इतला दी होती तो हम लेने मुख्य सड़क पर आ जाते। यह रास्ता खराब है। इतने अंधेरे में आप कैसे पहुंचे।’
उस शख्स ने आसमान में देखा और कहा-‘सच तो यह है कि इस अंधेरे से वास्ता नहीं पड़ता तो रौशनी का मतलब समझ में नहीं आता। शहर में हम इतनी रौशनी बरबाद करते हैं एक बूंद रौशनी की कीमत ऐसे अंधेरे में ही पता लगती है।’
वह रिश्तेदार उसकी तरफ देखने लगा। उसने लंबी सांस भरकर फिर कहा-‘एक मोमबती की बूंद भर रौशनी ने जो राहत दी उसे भूल नहीं सकता। जाओ, पानी ले आओ।’
वह रिश्तेदार उस शख्स का चेहरा गौर से देख रहा था जो आसमान में देखकर कुछ सोच रहा था।
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