वह दो नंबर की कमाई के कारण बदनाम हो गये थे। तमाम तरह की जांचें चल रही थी। अखबार में बहुत सारी बातें अक्सर उनके बारे में छपती रहती हैं। इस बार होली पर लोग उनके घर पर पहुुंचे। लोगों का क्या है? वह तो जिसके पास भी दौलत होती है उसके बारे में यही कहते हैं कि ‘बदनाम हुआ तो क्या नाम तो है?’
इस कारण उनसे फायदा उठाने वाले सेठ, झूठन पर पलने वाले चमचे और काली कमाई से वेतन पाने वाले कर्मचारियों का समूह उनके घर एकत्रित हो गया। साहब अंदर थे और इधर बाहर बैठे लोग उनका इंतजार कर रहे थे।
साहब थे कि बाहर नहीं आ रहे थे। इधर उनके चाहने वालों का धीरज टूटा जा रहा था। तब एक चपरासी अंदर गया और साहब से बोला-‘साहब बाहर आईये। लोग होली पर आपको रंग लगाने आये हैं। सभी आपके साथ पिछली बार मनाई गयी होली को याद कर रहे हैं।’
साहब ने कहा-‘जाओ, उनसे कहो। इस बार रंग नहीं केवल गुलाल लगायेंगे क्योंकि पानी की कमी है। उसे बचाने के लिये इस बार सूखी होली मनायेंगे।
चपरासी बाहर आया। उसने लोगोें से कहा कि ‘साहब ने कहा है कि इस बार सूखी होली खेलेंगे। देश में पानी की कमी है इसलिये उसे बचाना है। साहब जब बाहर आयें तो आप केवल गुलाल लगाना।’
सब ने हामी भरी। चपरासी अंदर गया। तब एक सेठ ने दूसरे से कहा-‘पर पानी बचाने की बात तो पिछले साल थी। तब तो खूब होली खेली थी। इस बार यह क्या हुआ?’
दूसरे सेठ ने कहा-‘धीरे बोलो यार। इस बार इनके नाम पर अखबारे के काले अक्षरों में जाने क्या क्या छपा है? सुना है काले रंग से ही वह डरने लगे हैं। पिछली बार लोगों ने काले रंग से मुंह पोत दिया था। वह फोटो अखबारों में भी छपा था। अब उनको डर है कि कहीं वही फोटो अखबार वाले निकाल न लायें। ऐसे में अगर किसी ने उन पर काला रंग पोता और उसकी फोटो अखबारे में छपी तो कितना बुरा लगेगा।’
तीसरा एक इस बात को सुना रहा था। उसने कहा-‘एक बात याद रखना! गुलाल भी माथे पर ही लगाना। मुंह पर पोता तो गुस्सा हो जायेंगे। आजकल वह अपना चेहरा उजला दिखाने का प्रयास करने लगे हैं।’
पहले सेठ ने कहा-‘हां, भई अपने पाप पीछा नहीं छोड़ते। चेहरा सभी अपना चेहरा उजला देखना चाहते हैं पर चरित्र की कालिख कोई साफ नहीं करना चाहता।’
यहां दो क्षणिकायें भी प्रस्तुत हैं।----------------
(1)
वह पानी बचाने के लिये
सूखी होली मना रहे थे,
दरअसल पानी से मनाते तो
उनके कुओं की पोल खुल जाती
जो केवल कागजों पर खुदवा रहे थे।
(2)
लोग पहुंचे उनके घर पर
तो पहले ही वह अपना मुंह काला किये बैठे थे
सेवक ने पूछा तो बोले
‘कोई दूसरा मुंह काला कर हंसे
इसलिये हमने पहले ही कर लिया है,
दुश्मनों ने लगा दिया है
चरित्र पर दाग
दोस्त रंग लगाकर ताना कसें
इसलिये अपने चेहरे पर
काला रंग कर लिया है।
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
-------------------------
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
No comments:
Post a Comment