Saturday, January 30, 2010

ख्वाबों की दुनियां-हिन्दी शायरी (khvabon ki duniya-hindi literature poem)

दीवार के पीछे ही

अपना चेहरा छिपाये रहो तुम,

तुम हो एक सजा सजाया ख्वाब,

कितने भी सवाल करूं

नहीं देना उनका जवाब,

तुम्हारे दिल के स्वर ही

दिमाग की सोच में बजते रहे हैं,

कई  शेर कहे हमने यह मानकर

जैसे कि तुमने कहे हैं,

अपने कड़वे सच के घूंट

हमने जहर की तरह पिये हैं,

अभी तक ख्वाबों के

अमृत के सहारे ही जियें हैं,

आंखों सामने आकर  अपना सच न दिखाना

जब तक हम भूलें न तुमको

दीवार के पीछे ही खुद को छिपाना,

वरना पल भर में ख्वाबों की दुनियां हो जायेगी गुम।

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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Wednesday, January 27, 2010

धोती और टोपी-हिन्दी हास्य व्यंग्य (dhoti aur topi-hindi hasya vyangya)

दीपक बापू जल्दी जल्दी सड़क पर जा रहे थे, सामने से थोड़ी दूरी पर स्कूटर पर सवार फंदेबाज आता दिखा। उनका दिल बैठ गया वह सोचने लगे कि ‘यह अब समय खराब करेगा। इससे बचने का उपाय भी तो नहीं है।’ फिर उन्होंने देखा कि वह तिराहे से गुजर रहे हैं और तत्काल अपने बायें तरफ मुड़कर दूसरे रास्ते पर चलें तो बच जायेंगे। उन्होंने यही किया पर स्कूटर पर सवार फंदेबाज उसी तिराहे से मुड़कर पीछे से आया और बोला-‘क्या बात है दीपक बापू! यह कैसे सोच लिया कि अपने इस आजीवन प्रशंसक से बचकर निकल जाओगे।’
दीपक बापू बोले-‘नहीं, यार, ऐसा नहीं है। दरअसल हमने अपने लिये एक टोपी खरीदी थी, वह उसी दुकान पर छोड़ आये। इधर कहीं शादी पर जाना है। इसलिये वही लेने जा रहे है। चलो, तुम मिल गये तो उस दुकान तक छोड़ दो।’
फंदेबाज ने ना में सिर हिलाते हुए कहा-‘अगर आपको अपनी टोपी बचानी है तो उसके लिये आपको स्वदेशी ढंग से ही प्रयास करना चाहिये। यह स्कूटर और पैट्रोल तो पाश्चात्य सभ्यता की देन है।’
दीपक बापू बोले-‘अच्छा, ठीक है! वैसे तुम्हें हमने अपने पीछे आने की दावत को नहीं दी थी। हम अपने मार्ग पर पैदल ही जा रहे थे।’
फंदेबाज ने कहा-‘हमने सोचा कोई दूसरी परेशानी है पर यह टोपी बचाने की समस्या ऐसी नहीं है कि हम आपके उसूलों के खिलाफ जाकर मदद करें। हां, आप चलते रहिये पीछे से हम स्कूटर पर धीरे धीरे आते रहेंगे। जब आप दूरे होंगे तो स्कूटर चलाते हुए आयेंगे। फिर रुक जायेंगे पर लौटते हुए जरूर वापस लायेंगे क्योंकि टोपी बचाने जैसा अहम विषय तब नहीं रहेगा।’
दीपक बापू फिर अपनी राह चले। रास्ते में ही उन्होंने देखा कि आलोचक महाराज एक पान की दुकान पर खड़े थे। वहां रास्ता बदलने की गुंजायश नहीं थी। तब उन्होंने दायें चलने की बजाय बायें किनारे से चलने का निर्णय लिया, मगर आलोचक महाराज की नज़र उन पर पड़ ही गयी। वह ऊं ऊं कर उनको बुलाते रहे पर दीपक बापू अनसुनी कर आगे बढ़ गये मगर पीछे से आ रहे फंदेबाज ने आगे स्कूटर खड़ा कर दिया और कहा-‘अरे, आलोचक महाराज आपको बुला रहे हैं। उनसे मिला करो, हो सकता है कि आपकी कुछ कवितायें अखबारों में छपवा दें। उनकी बहुत जान पहचान बहुत है। हो सकता है कभी कोई सम्मान वगैरह भी दिलवा दें।’
दीपक बापू ने आखें तरेरी-‘तुम्हें सब मालुम है फिर काहे आकर हमें उनसे मजाक में उलझा रहे हो।’
फंदेबाज ने भी उनकी बात को अनसुना कर दिया, बल्कि वह आलोचक महाराज की तरफ हाथ उठाकर इशारा कर बताने लगा कि उसने उनका संदेश उनके शिकार तक पहुंचा दिया है। दीपक बापू ने आलोचक महाराज को देखा और फिर पीछे लौटकर उनके पास गये और बड़े आदर से बोले-‘आलोचक महाराज नमस्कार! बड़े भाग्य जो आपके दर्शन हुए।’
आलोचक महाराज ने उंगली से रुकने का इशारा किया और थूकने के लिये थोड़ी दूर गये और फिर लौटे और बोले-‘मालुम है कि तुम हमारी कितनी इज्जत करते हो! हमारी पीठ पीछे तुम्हारी बयानीबाजी भी हम तक पहुंच जाती है। अगर हमारी इज्जत कर रहे होते तो तुम इस कदर फ्लाप नहीं हुए होते। इतने साल हो गये लिखते हुए पर इतनी अक्ल नहीं आयी कि जब तक हम जैसों की सेवा नहीं करोगे तब लेखन जगत में अपना नाम नहीं कमा सकते। घिसो अपनी उंगलियां, देखते हैं कब तक घिसते हो?’
दीपक बापू बोले-‘‘आपका कहना सही है पर अपनी रोटी की जुगाड़ के पास इतना समय भी बड़ा मुश्किल से मिल पाता है कि लिखें। अब या तो हम लिखें नहीं या फिर पुराने लिखे को लेकर इधर उधर डोलते फिरें कि ‘भईये, हमारा लिखा हुआ पढ़ो और छापो, नहीं पढ़ते तो हमसे सुनो’। आपकी सेवा का सुअवसर हमें कभी कभार ही मिल पाता है। अब आप ही बताईये कि क्या करें कि हमारा जीवन धन्य हो जाये!’
आलोचक महाराज बोले-‘अभी तो हमारी सेवा नहीं करनी पर एक सम्मेलन हो रहा है। तीन दिन तक चलेगा। अब तुम तो जानते हो कि आजकल धूल कितनी है। इसलिये हर दिन कुर्सियों की झाड़ पौंछ के लिये कपड़ा चाहिये। हमने सोचा तुम्हारे यहां पुरानी धोतियां होंगी। वह जरा भिजवा देना।’
इससे पहले दीपक बापू कुछ बोलते, बीच में फंदेबाज बोल पड़ा-‘महाराज, कुछ सम्मेलन की इज्जत का ख्याल भी करो। यह धोती पहनते हुए उसका कचूमर निकाल देते हैं। वह इतनी पुरानी है कि धूल के कण क्या हटेंगे, बल्कि उनकी मार से इनकी धोती के टुकड़े होकर गिरने लगेंगे।’
आलोचक महाराज ने फंदेबाज की तरफ गुस्से में देखा और कहा-‘देखो, हम तुम्हारे बारे में इतना ही जातने हैं कि तुम इसके ऐसे दोस्त हो जो अनेक बार इनकी टोपी उछालते हो जिससे व्यथित होकर यह हास्य कवितायें लिखते हैं। यह धोती खींचने वाला काम हमारे सामने मत करो। यह काम केवल हमारा है।’’
दीपक बापू बोले-‘महाराज, अब आप इसे छोड़े। मैं आपको एक नहंी पंद्रह धोतियां भिजवा दूंगा। कुछ पुरानी टोपियां भी रखी हैं। वह इस काम में लेना।’
आलोचक महाराज बोले-‘‘‘फिर तुमने हमारे साथ चालाकी की! धोती को देखकर कोई नहीं पूछेगा कि वह कहां से आयी? टोपी देख कर कोई भी सवाल कर सकता है तब तुम्हारा नाम पता चल जायेगा। इस तरह तुम अपना नाम कराना चाहते हो।’
दीपक बापू हंसकर बोले-‘क्या बात करते हैं महाराज! हमने कभी आपके साथ क्या किसी के साथ भी चालाकी की है? आपके पास प्रमाण हो तो बता दें। कब है सम्मेलन?’’
आलोचक महाराज बोले-तीन बाद है! पर तुम क्यों पूछ रहे हो? क्या वहां आकर लोगों कों बताओगे कि तुम्हारी पुरानी धोतियां झाड़ने पौंछने के लिये यहां लायी गयी हैं। ऐ भईये, तुम उधर झांकना भी मत, चाहे धोतियां दो या नहीं। भई, हमने तो यह सोचा कि चलो सम्मेलन वालों का भी काम हो जाये और तुम्हारे घर का सामान भी ठिकाने लग जाये। वैसे पुरानी धोतियों का होता भी क्या है? उन पर तो पुराने कपड़े लेने वाले कोई सामान भी नहीं देते। इस तरह तुम्हारे घर की भी सफाई हो जायेगी।’
फंदेबाज को अपना अपमान बहुत बुरा लगा था और बाद में दीपक बापू उसकी हंसी न उड़ायें इसलिये आलोचक महाराज से प्रशंसा पाने की गरज से बोला-’आप कहें तो वहां अपनी पुराने पैंट शर्ट भी भिजवा दूं।’
आलोचक महाराज ने कहा-‘तुमसे कहा था न कि चुप रहो! अरे, यह पैंट शर्ट सामा्रज्यवाद की पहचान है, जिसे अंग्रेज यहां छोड़ गये। हम तो कुर्ता पायजामा वाले ठेठ सभ्य भारतीय हैं। तुम मसखरी मत करो।’
इधर दीपक बापू ने उनसे कहा-‘मसखरी तो आप हमसे कर रहे है। हमने भला उस सम्मेलन में आने की बात कब कही? अरे ऐसे सम्मेलन थकेले, बुझेले, अकड़ेले और अठखेले लोगों के मिलन को ही कहा जाता हैं। हम इस श्रेणी में नहीं आते। लेखन हमारा व्यवसाय नहीं शौक है! आपको पुरानी धोतियां भिजवा देंगे। नमस्कार, अब चलता हूं।’
दीपक बापू चल पड़े तो पींछे से फंदेबाज भी आ गया और बोला-‘चलो, दीपक बापू। उन आलोचक महाराज ने आपको दुःखी किया इसलिये मेरा दायित्व बनता है कि आपको स्कूटर बिठाकर ले चलूं।’
दीपक बापू बोले-‘उन आलोचक महाराज ने हमारी टोपी बख्श दी, यही हमारे लिये बहुत है। अब तुम भी रास्ता नापो। अपनी टोपी हम खुद बचा लेंगे।’
फंदेबाज बोला-‘ठीक है, पर यह थकेले, बुझेले, अकड़ेले, और अठखेले लोगों से क्या आशय था?
‘नहीं मालुम!’यह कहते हुए दीपक बापू आगे बढ गये-‘अब यह कभी अगली किश्त में बतायेंगे जब तुम हमारी टोपी पर संकट पैदा करोंगे?’
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Sunday, January 24, 2010

दहेज का मामला-हिन्दी व्यंग्य कविता

शिक्षक पुत्र ने वकील पिता से कहा
‘पापा, मेरी शादी में आप दहेज की
मांग नहीं करना
यह बुरा माना जाता है
देश के समाज की हालत सुधारने का
श्रेय भी मिल जायेगा
हम पर कभी ‘दहेज एक्ट’ भी
नहीं लग पायेगा
उससे बचने का यही उपाय मुझे नजर आता है।’
वकील पिता ने कहा
‘बेटा, कैसी शिक्षा तुमने पायी
कानून की बात तुम्हारी समझ नहीं आयी।
‘दहेज एक्ट’ का दहेज से कोई संबंध नहीं
लेना और देना दोनों अपराध हैं
पर देने वाला बच जाता है
दहेज न लिया न लिया हो लड़के वालों
फिर भी लड़की का बाप लगाता है।
कानून से नहीं शर्माता है।
अगर दहेज एक्ट का डर होता तो
समाज में रोज इसकी रकम न बढ़ जाती,
नई चीजें शादी के मंडप में नहीं सज पाती,
तुम सभी देखते रहो
कानून की विषय है पेचीदा
हर किसी की समझ में नहीं आता है।’
नोट-यह कविता काल्पनिक है और किसी व्यक्ति या घटना से इसका कोई लेना देना नहीं है। किसी की कारिस्तानी से मेल खा जाये तो वही इसके लिये जिम्मेदार होगा।


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Monday, January 18, 2010

इंसान की बुनियाद-हिन्दी व्यंग्य कवितायें (insan ki buniyad-hindi vyangya kavitaen)

शहर को बढ़ते देखा

सड़कों को सिकुड़ते देखा,

इंसानों की जिंदगी में

बढ़ते हुए दर्द के साथ

हमदर्दी को कम होते देखा।

.......................


आसमान छूने की चाहत में

कई लोगों को जमीन पर

औंधे मुंह गिरते देखा,

बार बार खाया धोखा

फिर भी हर नये ठग की

चालों में उनको घिरते देखा।

..........................


हिन्दी में पैदा हुए

अंग्रेजी के बने दीवाने

पढ़े लिखे लोगों की

जुबां को लड़खड़ाते देखा।

भाषा और संस्कार

इंसान की बुनियाद होती है

मगर अपने अंदर बनाने की बजाय

लोगों को बाजार से खरीदते देखा

...........................


ख्वाहिशें पूरी करने के लिये

आंखों से ताक रहे हैं,

बोलते ज्यादा, सुनते कम

लोग सोच से भाग रहे हैं

समझदार को भी

चिल्लाते हुए देखा।

सभ्य शब्द का उच्चारण

बन गया है कायरता का प्रमाण

बहादुरी दिखाने के लिये

लोगों को गाली लिखते देखा।

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Monday, January 11, 2010

जो लालटेन से कंप्यूटर चलाने का अविष्कार करे-हिन्दी व्यंग्य (laltan aur bill gets-hindi satire)

अमेरिकन लोगों का विश्वास है कि अगला बिल गेट्स भारत या चीन में पैदा होगा। यह एक सर्वे करने वाली एक ऐजेंसी ने बताया है। जहां तक चीन का सवाल है उसकी वर्तमान व्यवस्था में यह संभव नहीं लगता कि कोई एकल प्रयासों से ऐसा कर लेगा। फिर यह भी पता नहीं कि वहां पूंजीवाद का इतना खुला स्वरूप है कि नहीं। अलबत्ता भारत में इसकी संभावनाओं में कुछ संदेह लगता है क्योंकि जो प्रबंध कौशल बिल गैट्स का रहा है वह भारतीयों में बाहर तो दिखाई देता है पर अपने देश में वह लापता हो जाता है। बिल गैट्स इसलिये बिल गेट्स बन पाये क्योंकि हजारों तकनीशियनों और कर्मचारियों का समर्थन उनको मिला जिसका कारण यह है कि अमेरिका में वेतन का भुगतान ठीक ठाक से होता है।
भारत में कोई आदमी पूंजीपति बनने की तरफ पहला कदम बढ़ाता है तो अपने अंतर्गत काम करने वालों का शोषण करना उसका पहला लक्ष्य होता है। दूसरे को प्रोत्साहित करने की बजाय उसे दुत्कार कर काम लेना ही यहां के सेठों की मानसिकता रही है और यही कुशल प्रबंध की पहचान मानी जाती है। यह अलग बात है कि इसी कारण भारतीयों की छवि बाहर बहुत खराब है।
भारत के इंजीनियर भले ही साफ्टवेयर में महारत हासिल कर चुके हैं पर बिल गेट्स के करीब कोई नहीं दिखता। अलबत्ता एक आदमी ने कंप्यूटर जगत में काम कर अपनी कंपनी को उच्च स्तर पर पहुंचाया पर उसने ऐसे घोटाले किये कि अब वह जेल में है। बहुत कम लोगों को याद होगा कि लोग उसकी तुलना बिल गेट्स से करते थे जो शून्य से शिखर पर पहुंचा। कुछ लोग तो उसे भारत का बिल गेट्स तक कहते थे। मुश्किल यह है कि भारत में बिना घोटाले के बिल गेट्स पैदा होना चाहिये जिसकी संभावना नगण्य हील लगती है।
अलबत्ता भारत में बिल गेट्स के पैदा होने या उन जैसी छवि बनाने की संभावनाऐं उसी व्यक्ति के लिये हो सकती हैं जो कंप्यूटर को लालटेन से चलाने में सक्षम बनायेगा।

पूरे देश में बिजली की कमी जिस तरह होती जा रही है उससे तो यह लगता है कि इंटरनेट और कंप्यूटर का प्रयोग भी कठिन होता जायेगा। ऐसे में कोई ऐसा व्यक्ति अविष्यकार करे जो लालटेन से ही कंप्यूटर से ऊर्जा प्रदाय करने का कोई साधन बनाये तो वह लोकप्रिय हो पायेगा। लालटेन से इसलिये कह रहे हैं कि उससे दो काम हो जायेंगे। लालटेन सामने रखने से पास ही रखी किताब या कागज से सामग्री टंकित तो की जा सकेगी और कंप्यूटर भी चलता रहेगा। क्या सुंदर अविष्कार होगा? फिर अपने देश में पैट्रोल की कमी नहीं है। खूब आयात होता है। उसमें कंपनियों को बढ़िया कमीशन मिलता है तो यह संभव नहीं है कि उसका कभी आयात बंद हो।
वैसे तो बैटरी और जनरेटर से भी वैकल्पिक लाईट से घरों में व्यवस्था कर इंटरनेट चलाया जा सकता है मगर सभी के लिये यह संभव नहीं है। छोटी बैटरी से कंप्यूटर चलता नहीं, जबकि बड़ी बैटरी जनरेटर की व्यवथा करना बहुत महंगा है फिर उसमें खर्चा अधिक है। अगर अपने कंप्यूटर और इंटरनेट का शौकिया उपयेाग करना है तो आदमी सस्ती चीज ही चाहेगा। लालटेन में भी कम ऊर्जा से कंप्यूटर चलाने की व्यवस्था होना चाहिये।
देश की आबादी बढ़ रही है और ऊर्जा के सारे परंपरागत स्त्रोत साथ छोड़ रहे हैं। कंप्यूटर तो बिना बिजली के चल ही नहीं सकता। जो बिजली की अपनी व्यवस्था कर सकते हैं वह कंप्यूटर चलाते होंगे पर यह आम आदमी के बूते का नहीं है।
इसलिये जो शख्स बहुआयामी लालटेन से कंप्यूटर चलाने का अविष्कार करेगा उसके लिये देश में सम्मान पाने की बहुत जगह है। कंप्यूटर में नये प्रयोगों की बहुत गुंजायश है पर सबसे अधिक आवश्यकता इस बात की है कि वह ऊर्जा के नये और सस्ते प्रयोग से वह चले। अब यह लालटेन मिट्टी के तेल और गैस से जले या डीजल से या पैट्रोल ये तो उसे ही तय करना है जिसे अविष्कार करना हो। अलबत्ता हमने यह बात लिख दी। अगर भारत में कोई बिल गेट्स जैसा अवतरित होने को तैयार हो तो पहले यह भी सोच ले। वैसे जब कारें गैस सिलैंडर से चल सकती हैं तो भला ऐसा गैस का लालटेन क्यों नही बन सकता जिससे कंप्यूटर भी चले। चाहे किसी भी तरह का अविष्कार हो उसका स्वरूप लालटेन की तरह सस्ता होना होना चाहिये।
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Wednesday, January 06, 2010

हिन्दी ब्लाग लेखकों के साथ यह धोखाधड़ी रोकनी होगी-आलेख (cheeting with hindi blogger-hindi blog)

आज समीरलाल जी से ने हिन्दी ब्लाग जगत से दूसरों की पोस्ट उठाकर अपने ब्लाग चमकाने वाले एक शातिर खिलाड़ी को पकड़ा। कहना चाहिये कि सात दिन से उसे पकड़ा है और उसे तब से टिप्पणियों के माध्यम से नोटिस भी पकड़ायें हैं। उसने हम दोनों की रचनाओं का जमकर उपयोग किया। एक जगह तो हिन्दी ब्लाग जगत की लेखिका संगीता पुरी जी ने उसे लिखा है भी है कि यह रचना कहीं पढ़ी हुई लग रही है।
आज समीरलाल जी ने हमारे दीपक बापू बहिन से उठाये गये पाठ की सूचना दी और हमने जाकर वह ब्लाग देखा।
New comment on your post #636 "ब्लाग लिखने में शेयर बाजार जैसा ही मजा-व्यंग्य आलेख"
Author : sameerlal (IP: 76.70.64.181 , bas2-oshawa95-1279672501.dsl.bell.ca)
E-mail : dupe-2-sameer.lal@gmail.com
URL : http://sameerlal.wordpress.com/
Whois : http://ws.arin.net/cgi-bin/whois.pl?queryinput=76.70.64.181
Comment:
दीपक भाई

आपका यह आलेख इस साइट पर बिना आपका संदर्भ दिये दिखा. आश्चर्य हुआ:

http://hindireader.blogspot.com/2008/10/blog-post_481.html
कृपया ध्यान दें. आपकी अन्य रचनाएँ भी वहाँ दिखाई पड़ रही हैं.

वाह क्या गजब किया है? हमारे पाठ उसने ऐसे सजायें हैं जैसे कि कोई भारी भरकम लेखक हो। हमने अपनी प्रतिक्रिया में उससे प्रति पाठ दो हजार मांगे हैं। हमने देखा है कि धमकी वगैरह की बात से लोग खौफ नहीं खाते जितना पैसे का दंड उनको सताता है। सच यह है कि हमारे एक कंप्यूटर विशेषज्ञ मित्र का कहना है कि आपको किसी का भी फोन नंबर उसके आई डी से पकड़ना है तो मुझे बताओ। वह टेलीफोन कंपनी से भी जुड़ा हुआ है।
पता नहीं लोगों को यह क्यों लगता है कि उनकी पकड़ कोई नहीं कर सकता जबकि उनको शायद मालुम नहीं है कि आजकल अपराध की जांच एजेंसियों का काम मोबाइल और कंप्यूटर से इसलिये कम हो गया है क्योंकि अपराधी इन्हीं चीजों का इस्तेमाल करते हैं।
हम झगड़ा नहीं करेंगे। गाली गलौच नहीं देंगे। सीधे कानून की शरण लेंगे, मय प्रमाण के। इस बारे में समीरलाल जी से चर्चा हुई है वह गूगल को शिकायत कर रहे हैं। जरूरत पड़ी तो हम भी करेंगे।
अरे, चेत जाओ मुफ्तखोरों! हमें यहां एक पैसा नहीं मिलता और न आशा करते हैं पर ऐसी हरकत हमें क्रोध दिलाती है। आप पूंछेंगे कि ज्ञानी होकर भी गुस्सा क्यों?
हम दृष्टा की तरह जीवन को देखते हैं। वह देहधारी जिसने हम आत्मा को धारण किया है उसे परिश्रम करते देख हम खुश होते हैं पर उसका कोई इस तरह दोहन करे तो क्रोध तो आयेगा ही न! भले ही हम आत्मा को धारण करने वाला चुप बैठा रहे पर हम उसकी उंगलियों को अगर रचना के लिये प्रेरित कर सकते हैं तो विध्वंस के लिये भी तैयार कर सकते हैं। वह हिंसा नहीं करेगा, गाली गलौच नहीं करेगा पर उसके साथ के लोग हैं जो ऐसे अवसर पर उसकी मदद करने को आयेंगे। इसलिये रास्ते दो ही हैं कि हर पाठ दो हजार भुगतान करो या ब्लाग से सारे पाठ हटा दो। अब नाम देने से भी कोई फायदा नहीं है। ऐसे दुष्टों से संगत भी कष्ट का कारण बनती है। बाकी लोग भी ऐसे लोगों से सतर्क रहें जो अंतर्जाल पर हिन्दी में नाम केवल दूसरों से धोखा कर चमकाना चाहते हैं।  अंतर्जाल पर लिखने में यही समस्या है कि कुछ लोग ब्लाग लेखकों को फालतु का आदमी समझकर उसके पाठों का इस तरह उपयोग करते हैं।
ऐसे लोगों से भी जूझना पड़ेगा तो फिर कौन हिन्दी में लिखने को तैयार होगा? सच तो यह है कि इस लेखक के अनेक मित्र इसलिये ही अंतर्जाल पर लिखने से कतराते हैं कि उनको चोरी का खतरा सताता है और हिन्दी अंतर्जाल पर लिखे जाने का यह भी एक कारण है। इससे निजात पाये बिना हिन्दी की अंतर्जाल पर पूर्णता से स्थापना एक कठिन काम होगा।
उस ब्लाग का पता यह है।
http://hindireader.blogspot.com

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
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