Tuesday, February 23, 2010

पेशा है अमीरों को गलियां देना-हिन्दी व्यंग्य शायरी (trede of welfare-hindi satire poem)

 नारे लगाकर हुई कमाई से
वाद चलाये जाते हैं,
आतंक वाले उदार दिखने की कोशिश करते
तो लोगों की तरक्की के लिये जूझने वाले
हिंसा को जरूरी बताये जाते हैं।
इस अर्थयुग में जमाने का मुफ्त में भला करने वाले
कहां से आयेंगे,
ख्याल हैं जिनके पुरानी किताबों के गुलाम
कब अपना सोच पायेंगे,
सुना है
बेबसों को इंसाफ दिलाने के नाम पर
बंदूक से गोलियां उगलने वाले भी
अपने बैंक खाते बढ़ाये जाते हैं।
पेशा है अमीरों को गलियां देना
शौक है पुरानी किताबों में सजी
नज़ीरें चलाने के लिये
नई नई गाड़ियां लेना
बहस करने पर
कोई कहे खेत की
तो वह खलिहान की सुनाये जाते हैं।
धोखा है उनका नज़रिया
वह सच से नज़र चुराये जाते हैं।
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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Friday, February 19, 2010

देशभक्ति का व्यापार-हिन्दी व्यंग्य कवितायें (deshbhakti ka vyapar-hindi comic poem)

आदर्श पुरुषों ने अपनी दरबार में
देशभक्ति का नारा बड़े तामझाम के साथ सजाया।
बाजार को बेचनी थी मोमबत्तियों
शहीदों के नाम पर,
इसलिये प्रचारकों से नारे को संगीत देने के लिये
शोक संगीत भी बजवाया।
भेजे आदर्श पुरुषों के नाम से
रुपयों से भरे लिफाफे
जिनकी समाज सेवा से आम इंसान हमेशा कांपे
दिल में न था भाव फिर भी
आदर्श पुरुषों के खौफ से
सभी ने देशभक्ति का गीत गाया।
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उनकी देशभक्ति की दुहाई,
कभी नहीं सुहाई,
मुखौटे हैं वह बाजार के सौदागरों के
जो जज़्बात बेचने आते हैं,
उनकी जुबां कभी बोलती नहीं
पर पर्दे के पीछे
वही संवाद लिखकर लाते हैं,
खरीदे देशभक्तों ने बस उनकी बात हमेशा दोहराई।
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Monday, February 15, 2010

सच बोलने पर इनाम नहीं होता-हिन्दी व्यंग्य शायरी (sach bolen par inam-hindi vyangya shayri)

इंसान की हर अदा पर मिलते हैं

पर सच बोलने पर कोई इनाम नहीं होता।

कितना भी हो जाये कोई अमीर,

पीछा नहीं छोड़ता उसका जमीर,

कैसे दे सकते हैं इनाम, उस शख्स को

बोलता है हमेशा सच जो,

खड़ी है दौलत की इमारत उनकी झूठ पर

चाटुकारों को लेते हैं, अपनी बाहों में भर

क्योंकि सच बोलने वालो से उनका काम नहीं होता।

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Friday, February 12, 2010

वैलेंटाईन डे आ रहा है-हिन्दी हास्य कविता (velantineday-hindi comic poem)

खबरची को किया उसके गुरु ने फोन

और बहुत दिन से न मिलने का दिया ताना

तब वह बोला

‘गुरुजी क्या बताऊं

खबरों की दुनियां हो गयी है जंग का मैदान

पिछ़ड जाओ एक दिन तो

मिट्टी में मिल जाती है

बरसों से कमाई अपनी शान,

पहले क्रिकेट में जीत पर लिखना था,

क्योंकि देशभक्त दिखना था,

फिर आ गया एक फिल्म का विवाद,

अभिव्यक्ति का समर्थक दिखना था निर्विवाद

अब वह भी निपट गया है

इसलिये अब कल मिलने आऊंगा

आपका ख्याल अब आ रहा है।’

गुरुजी बोले

‘ठीक है,

फिर एक सप्ताह बाद आना

अभी तुम्हें प्रेम दिवस पर लिखना है,

इंसानों जैसा दिखना है,

क्योंकि उस पर खड़ा होगा विवाद,

तुम्हें आजादी का पक्षधर दिखना है निर्विवाद,

दो दिन में वैलंटाईन डे आ रहा है।’

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Saturday, February 06, 2010

बखान-हास्य कविता (bakhan-hasya kavita)

सचिव ने कहा

समाज सेवक से कहा

‘आ गया है जमकर चंदा

चलेगा अपना जोरदार धंधा

अपने हिस्से का सही अंदाज बतायें

तो शुरु करें अब गरीबों के नाम पर कल्यान।’

समाज सेवक पहले चौंके

फिर बोले-

‘अरे, क्या कहते हो,

भला, क्यों जज़्बात में बहते हो,

अभी तक नब्बे फीसदी था

अब सौ फीसदी कर लो,

अपने ही खातों में भर लो,

कागजी खाना पूरी करना,

प्रचार के लिये कुछ रकम भरना,

फिर शुरु करो अपने काम का बखान।



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Tuesday, February 02, 2010

सौदागर और ढिंढोरची-हिन्दी व्यंग्य कविता (market and media-hindi comic poem)

चौराहे पर चार लोग आकर

चिल्लाते जूता लहरायेंगे,

चार लोग नाचते हुए

शांति के लिये सफेद झंडा फहरायेंगे।

चार लोग आकर दर्द के

चार लोग खुशी के गीत गायेंगे।

कुछ लोगों को मिलता है

भीड़ को भेड़ों की तरह चराने की ठेका

वह इंसानो को भ्रम के दरिया में बहायेंगे।

सोच सकते हैं जो अपना,

दर्द में भी नहीं देखते

उधार की दवा का सपना,

सौदागरों और ढिंढोरची के रिश्तों का

सच जो जानते हैं

वही किनारे खड़े रह पायेंगे।

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