Friday, November 25, 2011

यह महाशतक गिनती का कौनसा आंकड़ा है-हिन्दी व्यंग्य (wha is meaning of great century or mahashaktak-hindi satire article aur vyangya lekh)

          कल 26 नवंबर है और मुंबई पर दो वर्ष पूर्व हमले की याद या शोक में अनेक शहरों में मोमबत्तियां जलाकर मृतकों के प्रति सहानुभूति की रस्म अदा की जायेगी। अपना अपना तरीका है और उस पर टिप्पणियां करना ठीक नहीं लगता। अमेरिका के न्यूयार्क शहर के विश्व व्यापार केंद्र की इमारतें ढहने के बाद वहां हर वर्ष शून्य तल पर मोमबत्तियां जलाकर शोक मनाया जाता है। उसी की तर्ज पर यहां के आधुनिक लोगों ने इसे प्रारंभ किया है। अब यह पता नहीं कि वह अपने अंदर अमेरिकी जैसे होने का भाव पालकर एक सुखद अनुभूति पालते हैं या फिर अमेरिकियों को यह संदेश भेजते हैं कि देखो हम भी अब तुम्हारी तरह ही हैं। यह भी संभव है कि वहां रह रहे प्रवासियों को भी संदेश भेजते हैं कि हम भी कितने संवेदनशील हैं। संभव है यह तीनों बातें न हों पर इतना तय है कि आधुनिक रूप से शोक मनाना उनके लिये एक फैशन हैं जिसमें संवेदनायें होती नहीं पर दिखाई जाती हैं।
          देखा जाये तो हममारे देश में हमले कई जगह हुए हैं पर बरसी किसी की मनाई नहीं जाती। दरअसल अगर आतंकवादियों ने मुंबई के छत्रपति शिवाजी रेल्वे टर्मिनल पर आक्रमण नहीं किया होता तो शायद हमले के प्रति इतना जनाक्रोश नहीं होता कि पाकिस्तान पर हमले की बात की जाती। दूसरा यह भी कि अगर यह हमला केवल शिवाजी टर्मिनल पर नहीं होता तो भी शायद ही कोई ऐसा शोक दिवस मनाता। आतंकवादियों ने ताज होटल पर हमला किया था जिसमें धनिक लोगों का आना जाना होता है। फिर व्यापारिक रूप से उसकी विश्व में प्रतिष्ठा है। शिवाजी टर्मिनल में मरने वाले आम लोग थे। भले ही वह अमीर हों या गरीब पर ताज में मरने वालों का खास होना वहां जाना ही प्रमाणित करता है। कहने को भले ही इस हमले में शिवाजी टर्मिनल का नाम लें पर सच यह है कि इस शोक दिवस को मनाने की पृष्ठभूमि में ताज होटल पर किया गया हमला है। वह अमेरिका के विश्व व्यापार केंद्र जैसा नहीं है पर अंततः उसका स्वामित्व अंततः भारत के सबसे बड़े औद्योगिक समूह का है और यही उसे विश्व व्यापार केंद्र के समक्ष खड़ा करता है।
      यह सब बाज़ार का खेल है। सौदागरों ने विश्व के अधिकांश आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक तथा धार्मिक संगठनों पर नियंत्रण कर लिया है। संगठनों के मुखिया उनके मुखौटों की तरह हैं। जिन पर प्रत्यक्ष नियंत्रण नहीं है उन पर भी अपने धन और प्रचार की शक्ति भी इस तरह नियंत्रण किये रहते हैं कि उनके सहयोग के बिना मुखिया बेबस होता है। ऐसे में आम आदमी का नाम केवल सहानुभूति के लिये भी तब लिया जाता है जब उसका आर्थिक दोहन किया जा सके।
         वैसे प्रचार माध्यम इस समय व्यापारिक रूप से शोक जता रहे हैं। उनके भगवान का महाशतक पूरा नहीं हो सका। यह महाशतक क्या बला है? एक दिवसीय और पांच दिवसीय मैचों में कुल मिलाकर एक सौ शतक। यह महाशतक गिनती का कौनसा आंकड़ा है पता नहीं! बाज़ार चाहे जो बोले वही ठीक! मुंबई में
         वेस्टइंडीज के साथ बीसीसीआई की टीम का पांच दिवसीय मैच चल रहा था। क्रिकेट का भगवान 94 रन पर है यह हमें भी पता लगा। सारे समाचार चैनल इस खबर को लेकर बैठ गये। उनके पास विज्ञापनों का टाईम पास करने के लिये एक ऐसा मसाला मिल गया जिसे वह छोड़ नहीं सकते। आम आदमी को क्या कहें हम जैसा ज्ञानी ध्यानी भी चैनल बदलकर उस जगह पहुंचा जहां यह मैच दिखाया जा रहा था। भगवान का साथी खेल रहा था। जब हम बैठकर देखने लगे क्योंकि भगवान दूसरे सिरे पर था। हमने देखा है कि क्रिकेट के भगवान को 90 और सौ के बीच खरगोश से कछुआ बन जाता है। फिर भी तय किया कि बाज़ार के इस महानायक का खेल आज देख तो लें भले ही इसमें अब दिलचस्पी न के बराबर रह गयी है। मगर यह क्या खेलने के सिरे पर आते ही क्रिकेट का भगवान आउट हो गया।’
       स्टेडियम में सन्नाटा छाया था तो चैनलों के पास ब्रेकिंग खबर बन गयी थी। तमाम तरह के जुमले ‘पूरा देश हताश हो गया है’, सचिन के प्रशंसक दंग रह गये हैं’, ‘अभी क्रिकेट के भगवान का महाशतक पूरा होने के लिये और इंतजार करना होगा’ और ‘हो सकता है कि एकदिवसीय मैचों में यह महाशतक पूरा हो’।
         हम फिर मैच देखने लगे। मैदान पर हमने यह आवाज सुनी कि ‘वी वांट फालोआन’। पता नहीं यह संदेश वेस्ट इंडीज के खिलाड़ियों के लिये था या बीसीसीआई के कप्तान के लिये जो उस समय खेलने आया था। फालोआन का मतलब यह था कि वेस्टइंडीज की पहली पारी के 590 रन के जवाब में भगवान की टीम 390 पर यानि 200 रन पहले आउट हो जाये तो उसे फालोआन पर अपनी दूसरी पारी इंडीज टीम से की दूसरी पारी ने पहले खेलने को मजबूर किया जाये। देखा जाये तो बीसीसीआई टीम के साथ भारत शब्द जुड़ा है इसलिये भारतीय दर्शकों से ऐसी दर्दनाक दुआ की आशा तो की ही नहीं जा सकती। मगर यह हुआ।
        हालांकि पूरे स्टेडियम में यह आवाज नहीं थी इसलिये सभी दर्शकों पर कोई आक्षेप नहीं किया जाना चाहिए। मगर यह हुआ। स्पष्टतः बाज़ार ने ऐसे कच्चे संस्कार देश के लोगों में बो दिये हैं कि वह चाहे उसे जब देशभक्ति की तरफ मोड़ ले या व्यक्तिपूजा की तरफ ले जाये। देश से बड़ा क्रिकेट का भगवान हो गया।
         बहरहाल बाज़ार ने क्रिकेट को अपना सबसे बढ़िया सौदा बना लिया है। अभी तक बाज़ार खुशी के माहौल का इंतजार करता था कि उसे ग्राहक मिलेगा पर अब सौदागरों ने अपने प्रचार समूहों की मदद से ऐसे अवसर बना लिये हैं जो उसे खुशी के साथ शोक भी क्रय विक्रय के लिये उपलब्ध कराते हैं। क्रिकेट का भगवान शतक नहीं बना सका इस पर शोक चैनल भुना रहे हैं तो प्रचार प्रबंधक प्रसन्न हो रहे होंगे कि चलो अभी और कमाने का मौका है। जब तक शोक बिकता है बेचते रहेंगे। हो सकता है कि प्रचार प्रबंधक इस बात का अनुमान भी लगा रहे हों कि अगली बार नब्बे के बाद भी यह महाशतक पूरा नहीं हुआ तो शोक बिक पायेगा कि नहीं। एक बार कथित महाशतक पूरा हो गया तो फिर क्रिकेट के भगवान की किस अदा को दिखाकर कमाया जायेगा।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
poet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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Tuesday, November 15, 2011

पत्थर और इंसान-हिन्दी शायरी (patthar aur insan-hindi shayari or poem)

पत्थर के देवता
पूजने पर अफसोस नहीं होता,
क्योंकि देवताओं को पूजने वाले इंसान
अब पत्थरों जैसे हो गए,
दौलत, शोहरत और हुकूमत के गुलाम लोग
बुतों की तरह खड़े नज़र आते हैं,
अपनी भलाई और कमाई तक
मतलब रखते
फिर मुंह फेर जाते हैं,
पत्थरों को पूजने का अफसोस नहीं होता
मालूम है कि
उन पर कभी फूल उग नहीं पाते हैं।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
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Tuesday, November 08, 2011

हरिद्वार के गायत्री महाकुंभ में हादसाःभारतीय अध्यात्म दर्शन को समझने की आवश्कयता-हिन्दी लेख (trezdy in gayatri mahakumbh and in haridwar and hindi indian religion-hindi lekh or article

              हरिद्वार में आयोजित गायत्री महाकुंभ के दौरान मची भगदड़ में अनेक लोगों की मौत होने का समाचार अत्यंत दुःखदायी है। हम यह कामना करते हैं कि परमात्मा मृतकों के परिवारों को पीड़ा सहने की क्षमता और हताहतों को जल्दी स्वास्थ्य प्रदान करे।
            एक योगसाधक, गीता शिष्य और और अध्यात्मिक लेखक होने के नाते इस घटना पर हमारे लिये लिखना अत्यंत द्वंद्वपूर्ण और पीड़ादायक है। एक तरफ भारतीय अध्यात्मिक ज्ञान का भंडार है तो दूसरी तरफ मासूम और भोले लोगों का अज्ञान जो उन्हें कहीं भी इंसान से भीड़ की भेड़ बना देता है। कभी मानसिक शांति तो कभी अपना सांसरिक कार्य सिद्ध होने की कामना उनको धार्मिक कर्मकांडों की तरफ आकर्षित करती है। जिस कार्य को करना उनके हाथ संभव है उसके लिये कोई याचना नहीं करता पर जिसका आधार कोई अन्य व्यक्ति, समय या स्थितियां हैं वहां हर मनुष्य अनकूल परिणाम के लिये अदृश्य शक्ति की तरफ देखता है। चुप बैठ नहीं सकता तो अपने हाथ से हवन, तंत्र मंत्र या दान अपनी सक्रियता से अपने आपको तसल्ली देता है। ऐसे में बरसों से सक्रिय बाज़ार तंत्र उसके सामने अध्यात्म के नाम पर अपना सौदा बेचता है। जिसे आदमी समझ नहीं पाता। संसार के काम तो बनते बिगड़ते रहते हैं जिसका बन गया वह मुरीद बन गया जिसका नहीं बना वह भगवान की मर्जी मानकर बैठ गया। बहरहाल अध्यात्म के नाम मेले लगते हैं और लोग उसमें शामिल होकर अपने आपको धन्य मानते हैं। सब ठीक रहा तो आयोजकों की वाह वाह और कोई हादसा हुआ तो दुर्भाग्य का दोष दिया जाता है।
           हम यहां गायत्री परिवार के संस्थापक श्रीराम आचार्य की जन्मशती के अवसर आयोजित कार्यक्रम में हुई भगदड़ पर न तो आयोजकों से सवाल करेंगे न ही सरकार या पुलिस पर आक्षेप करेंगे। हम तो यह सीधे भारतीय समाज के महानुभावों को संबोधित कर पूंछेंगे कि क्या वह वास्तव में अध्यात्म और धर्म का मतलब समझते हैं? क्या वह पेशेवर गुरुओं और संस्थाओं के शीर्षपुरुषों की सोच को ही अंतिम मानने की बजाय कभी स्वयं धर्म ग्रंथों की विषय सामग्री पर चिंत्तन और मनन करते हैं?
          सवाल किया है पर जवाब नहीं चाहिए। भारतीय समाज की स्थिति यह है कि उसे अध्यात्म ज्ञान की चर्चा और कर्मकांड के के निर्वहन के लिये एक मध्यस्थ चाहिए। लोग सामान्य सांसरिक विषय पर इस तरह ज्ञान बघारते हैं जैसे कि उनका कोई सानी नहीं है पर जब अध्यात्मिक ज्ञान की बात हो तो कहते हैं कि यह तो सन्यासियों और संतों का विषय है। श्रीमद्भागवत गीता का अध्ययन करने वाले जानते हैं कि यज्ञ और हवन केवल प्रथ्वी पर उत्पन्न वस्तुओं से ही नही होता वरन् देह में भी वही पदार्थ हैं और पसीने के माध्यम से उनको बाहर लाना भी यज्ञ सम्पन्न करने जैसी प्रक्रिया है। भगवान श्रीकृष्ण ने प्रायायाम और ध्यान को भी यज्ञ कहा है। प्राणायाम से देह में जो ऊर्जा पैदा होती है वह यज्ञ सामग्री ही है। उस समय गायत्री मंत्र का जाप करने का सीधा मतलब यही है कि हम एक महान अध्यात्मिक यज्ञ कर रहे हैं। योगसाधक इस यज्ञ को प्रतिदिन करते हैं और इसके लिये उनको कहीं जाने की आवश्यकता नहीं होती। दूसरी बात यह है कि अध्यात्मिक कर्म नितांत एकांत में किया जाता है उसके लिये मेले नहीं लगते। श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने द्रव्यमय यज्ञ से ज्ञान यज्ञ को श्रेष्ठ माना है। ज्ञानी लोग प्राणायाम आदि के बाद ध्यान तथा मंत्रजाप वही यज्ञ और हवन काम करते हैं जो सामान्य मनुष्य बाहरी पदार्थों से करते हैं। यही कारण है कि भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि वैसे तो मुझे सारे भक्त प्रिय हैं पर ज्ञानी तो मेरा ही रूप है।
        अध्यात्मिक के नाम पर समय पास करने या मनोरंजन के लिये इस तरह के मेले लगते हैं उसमें शामिल होने वाले लोगों को कितना लाभ होता है इस पर बहस करने की आवश्यकता नहीं है पर इतना तय है कि परेशान हाल लोग कुछ समय के लिये अपने घर से बाहर होकर तनाव रहित होते हैं पर फिर वापसी पर वहीं पुरानी स्थिति हो जाती है। एकांत में योग साधना तथा अध्यात्मिक चिंत्तन करने वाले जहां है वहीं प्रतिदिन स्वयं को नवीनता प्रदान करते हैं। दरअसल इस तरह के मेले लगवाने वाले ज्ञानी नहीं हो सकते। यह एक तरह से अपने धर्म का प्रदर्शन है जिसे राजस या तामस कुछ भी समझा जा सकता है पर सात्विक कतई नहीं कहा जाता। ऐसे में समाज के समझदार लोगों को यह देखना चाहिए कि वह अपने आसपास के लोगों को समझायें कि इस तरह के मेले अध्यात्मिक शांति या मानसिक सुख नहीं दे सकते।
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कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
poet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
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