Sunday, February 26, 2012

इंसान और साँप-हिन्दी कविता (insan aur saanp-hindi kavita ,snack and men-hindi poem)

भीड़ ने साँप देखा
एक इंसान ने उसे पकड़ा और जला दिया
इस भय से कि वह किसी को काट न ले
कहना कठिन है
इंसानों को साँप से खतरा ज्यादा है
या साँपो को इंसानों से
यह तय है कि
इंसानों के शिकार साँप अधिक होते हैं,
अपने ही साथियों की
कुछ भूलों की कीमत के बदले
अनेक साँप अपनी ज़िंदगी खोते हैं।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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Saturday, February 11, 2012

हमारे कदम-हिन्दी कविता (hamare kadam-hindi kavita or poem)


जिनका इंतज़ार किया वह कभी आए नहीं,
मिले हमसफर राह में कभी हमें भाए नहीं।
चले हम जमाने के साथ मगर हुए नापसंद
इतने तन्हा रहे की अपने साये भी साथ नहीं।
बस यूं ही लफ्जों में अपने जज़्बात भरते रहे,
जुल्म सहे पर तसल्ली है किसी पर ढाये नहीं।
कहें दीपक बापू खुद से बात करते बिताया समय
हमारे कदम चल अपनी राह,आँसू कभी बहाये नहीं।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
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