Monday, July 30, 2012

समझौतावादी-हिन्दी हास्य कविता (samjhautawadi-hindi hasya kavita or saitre comedy poem)

समाज सेवक ने कहा अपने चेले से
‘‘अब न अपने पास कोई  पद है
न जनता में अपनी छवि का कोई कद है,
चलो कोई विषय बताओ
जिसे लेकर आंदोलन चलायें,
अपनी डूबती प्रतिष्ठा की नाव पार लगायें।’
तब चेला बोला
‘‘महाराज,
आप अब किसी आंदोलन के
चक्कर में नहीं पड़ना,
कहीं उससे न पड़ जाये
व्यर्थ में आपको लड़ना,
अपने बहुत सारे मसले दबे हुए हैं,
विरोधियों की नजर में फंसे हुए हैं,
इसलिये अब समझौतावादी बन जाईये,
जहां कोई आंदोलन चल रहा हो
वहां एक पांव समर्थन में
दूसरा बातचीत में लगाईये,
इससे निष्पक्ष छवि बन जायेगी,
जनता आपको सर्वमान्य बतायेगी,
लड़ रहें हो दो पक्ष
मध्यस्थ बनकर वहां घुस जायें,
वह लड़ते रहें
कभी एक न हों
यह हमेशा याद रखें
किसी के समझ में न आये
वही बात सभी को समझायें।

कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
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