Sunday, July 27, 2014

सच्चे हमदर्द की जरुरत-हिन्दी कविता(sachche hamdard ki jaroorat-hindi poem)



जिनके शब्द प्रखर हों
ज़माने में अपना चेहरा चमकाने की
उनको जरूरत नहीं होती।

जिनकी अभिव्यक्ति में
भावनाओं की शक्ति हो
शोर मचाने की उनको जरूरत नहीं होती।

अपनी योग्यता के सहारे
लड़ते हैं अपने जीवन का युद्ध
बैसाखियों की उनको जरूरत नहीं होती।

कहें दीपक बापू इंसान है जरूरत का गुलाम
योग्यता से अधिक पाने की इच्छा
हृदय में उसके रहती हमेशा
 मतलब हो तो तलुवे चाटता है
निकल जाये तो काटता है
 उसे कभी सच्चे हमदर्द की जरूरत नहीं होती।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
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Friday, July 18, 2014

हार्दिक हमदर्दी नहीं आयेगी-हिन्दी कविता(hardik hamdardi nahin ayegi-hindi poem)



आज कार खरीदी है
कुछ समय तक तेल पीयेगी
फिर पुरानी लगेगी
तब कोई नयी आयेगी।

आज टीवी खरीदा है
कुछ समय तक आंखों में
दिखेंगे रंगीन दृश्य
एक दिन उसकी भी
तस्वीर धुधली हो जायेगी।

आज मोबाइल खरीदा है
 कानों से चिपका रहेगा
लोग करेंगे दूर से बात
उनके पास न होने की कमी सतायेगी,

कहें दीपक बापू सामानोें के बाज़ार में
खो गया हर इंसान
हृदय में नहीं बची संवेदना
किसी  गम हल्का करने  के लिये
बाहर से हार्दिक हमदर्दी नहीं आयेगी
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
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Tuesday, July 08, 2014

कचड़ा और सफाई-हिन्दी व्यंग्य कविता(kachada aur safai-hindi satire poem's)



जमीन पर चलते हुए लोग
आकाश की तरफ देखकर सोचते हैं
घर की छत पर सितारे सजाने का देखते सपना,
साफ न नीयत है न आंगन
मनोरंजन के गुलाम हो चुके सभी
क्या प्यार करेंगे कुदरत के तोहफे से
पल पल में बदलते ख्याल अपना।
कहें दीपक बापू अपने हाथ से कचड़ा फैलाकर
दूसरे पर डालते सफाई की जिम्मेदारी,
बीमार आदतों के मालिक
क्या करेंगे बदतर हालत के शिकार की तीमारदारी,
चलते फिरते सभी पर टांगों को तमीज नहीं,
सफेदपोश काले कारनामों से करते नहीं परहेज
फिक्र उनको भी है कि मैली न हो जाये कमीज कहीं,
अपने मतलब में मस्त है जमाना
लालच के अलावा कोई नहीं किसी का अपना।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
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