Sunday, September 28, 2014

भावनओं के फूल खिला देते हैं-हिन्दी कविता(bhavnaon ke fool khila dete hain-hindi poem)



हृदय का मेल होता नहीं
मुलाकात में सभी लोग
हाथ मिला लेते हैं।

आंख से आंख न मिलाना पड़े
राह चलते हुए लोग
अभिवादन के लिये
हाथ ही हिला देते हैं।

घमंड में चूर है अमीर
अपनी ताकत दिखाने के लिये
रोज एक नया किला लेते हैं।

कहें दीपक बापू सद्भाव की बात
कहते हुए लोग अपना सीना फुलाते,
मतलब के लिये करते जंग
कामयाबी के लिये
प्यार के निशान तक भुंलाते,
नमन है ऐसे भलमानसों को
दिल से करते दुआ सभी के लिये
संवेदनाओं से रहित
रेगिस्तान जैसे समाज में
भावनाओं के फूल जो खिला देते हैं।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
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Tuesday, September 23, 2014

बाज़ार में बिकते शब्द-हिन्दी व्यंग्य कविताUbazar mein dikte shabd-hindi satire poem)



रचनाकार के प्रबंध कौशल से
शब्द जब बाज़ार में
बिकने आते हैं
उनको चमका दिया जाता है।

सौदागरों के दिल को भाये
उनके दाम ज्यादा लगते
चुभने वाले शब्दों को
अकेले में धमका दिया जाता है।

कहें दीपक बापू पढ़ने में
ज़माना कभी आज़ाद नहीं रहा,
शब्द वही चला जो
वस्तु की तरह बाज़ार में बहा,
दिल से निकली रचना का
कोई हिसाब नहीं लगाता,
ज़माने में जाग्रति लाने का दावा
मगन सोये को जगाने कोई
सौदागर नहीं जाता,
कभी खुशी का फैशन होता
शब्द नाचते हुए दिखते
कभी उनको रुलाकर
बहाना गम का किया जाता है।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
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Monday, September 15, 2014

नर नारी और बाज़ार-हिन्दी व्यंग्य कविता(nar nari aur bazar-hindi satire peom;s)



पर्दे पर नर नारी के
संयुक्त नृत्य करने का
दृश्य लगता हैं रंगीन।

कहीं फिसल लाये पांव
गड़बड़झाला हो जाये तो
विषय हो जाता संगीन।

प्रचार प्रबंधक नारी की
बदहाली पर कभी तरस खाते हैं
कभी भावभीनी अदाओं कर
तालियां बरसाते हैं
साथ में बजाते विज्ञापन की बीन।

कहें दीपक बापू नारी नारी
दोनों ही रचे प्रकृति ने,
भेद कर दिया आकृति ने,
बुद्धिमानों ने बाज़ार की शय
बना दिया
सेठ हो या मज़दूर
पुरुष हमेशा दानव होता
स्त्री होती हमेशा हीन।
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Wednesday, September 10, 2014

अंग्रेजी विरुद्ध हिन्दी-14 सितम्बर हिन्दी दिवस पर विशेष कविता(inglish v/s hindi-A special poem on hindi diwas or hindi divas



शब्दों के रचनात्मक अर्थ
वह कभी नहीं समझेंगे
जो जुबान से गिरे हैं।

इतिहास के उदाहरणों से
अपना मुख छिपाने वाले
सच्चा वक्तव्य कभी नहीं देंगे
जो स्वार्थ के बंधन से घिरे हैं।

कहें दीपक बापू राष्ट्रभाषा कहो या मातृभाषा
हिन्दी के लिये वह
एक दिन रखते उपवास,
अंग्रेंजी का रहता फिर भी
हृदय में स्थाई वास,
आखिर उसकी वजह से ही
उनके दिन फिरे हैं।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
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Thursday, September 04, 2014

नैतिकता की तस्वीर-हिन्दी कविता(naitikta ki tasweer-hindi poem)



दावा करते वह
सभी इंसान समान हैं
इसलिये उनमें भेद नहीं करते।

उनकी सच्चाई यह
अवसर के अनुसार बनते बिगड़ते विचार
धोखा कर भी खेद नहीं करते।

कहें दीपक बापू सीने  पर
सजा ली हैं उन्होंने
नैतिकता की तस्वीर,
कितना भी प्रिय हो
प्रतिकूल होने पर
चलाते उसकी पीठ पर तीर,
चले हमेशा भ्रम का रास्ता,
देते हमेशा सच का वास्ता,
छोड़ा नहीं कोई
ख्यातिनाम महापुरुष
जिसकी प्रशंसा में छेद नहीं करते।
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