Sunday, December 28, 2014

संत का फिल्म में नायक की भूमिका निभाना गलत नहीं-हिन्दी चिंत्तन लेख(film messenger of god and india religion,sant and actor-hindi article)



            आजकल एक धार्मिक संत की फिल्म भगवान का संदेश वाहक’ (messanger of god)नामक फिल्म की चर्चा है। इस फिल्म मेें नायक, गायक, लेखक, संगीतज्ञ तथा निर्देशक वही संत है जिसके पांच करोड़ से अधिक भक्त हैं। इसी चर्चा के बीच एक मुंबईया फिल्म पीके का भी नाम चल रहा है।  इसमें भारतीय धर्म पर व्यंग्य कसे गये है। इस फिल्म में नायक की भूमिका निभाने वाला एक चाकलेटी चेहरे वाला अभिनेता है। आयु से अधेड़ कहलाने योग्य उस अभिनेता के अभिनय की चर्चा अधिक करना व्यर्थ है।  वैसे भी हमारी मुंबईया फिल्मों में पचास के पार हो चुके अधेड़ अभिनेता नायकत्व पाकर षोडषवषीर्य समाज में सम्मानित हो रहे हैं।  यह सम्मान मजबूरी भी हो सकती है क्योंकि हमारे देश में खर्च करने के लिये पैसा और समय बहुत हो गया है।  हम फिल्म देखने के बहुत शौकीन रहे हैं पर दो सौ रुपये की टिकट और ढाई घंटे का समय खर्च कर हम फिल्म नहीं देखना चाहते।
            अभी एक फिल्म आई थी। ओ माई गॉड। कटाक्ष उसमें भी थे पर उसमें जिस तरह श्रीमद्भागवत गीता का संदेश स्थापित हुआ था उससे हमें प्रसन्नता हुई।  पीके फिल्म के विज्ञापन में तमाम तरह के कटाक्ष है जो प्रभावी है शायद दर्शक इसी वजह से जा रहे हैं।  हमने फिल्म देखी नहीं है पर पता चला कि इसमें एक भारतीय हिन्दू लड़की का पाकिस्तान के मुस्लिम लड़के से प्यार दिखाया गया है। विज्ञापन में इसका उल्लेख नहीं है शायद यही कारण है कि उसे दर्शक मिल गये। इस फिल्म का अंत हिन्दू हृदयों को पसंद नहीं आयेगा पर तब तक देर हो जाती है।  पैसे और समय खर्च हो जाता है उसके बाद अंत से नाराजगी जताने से कोई लाभ नहीं है। इस फिल्म में मंदिर पर दूध बहाने पर किया गया व्यंग्य वैसा ही है जैसा ओ माई गॉड में था पर उसमें श्रीमद्भागवत गीता के लिये सकारात्मक भाव था इसलिये धार्मिक संतुलन था जबकि फिल्म में एक भारतीय धर्म पर कटाक्ष है फिर समाज पर इकतरफा प्रहार भी है।  ऐसा मत देखने वालों की आधार पर बना है।
            बहरहाल हम हरियाणा के उस चर्चित संत की फिल्म की प्रतीक्षा कर रहे हैं।  वह पहले ऐसे संत हैं जो नायक का अभिनय भी कर रहे हैं। प्रचार से मिली जानकारी के अनुसार जिन फिल्मों के स्टंट दृश्यों के लिये मुंबईया फिल्मों के अधेड़ अभिनेता अपने प्रतिरूप सहयोगियों का उपयोग करते हैं वह नायक संत ने स्वयं किये हैं। फिल्म मसाला कहानी की लगती है पर संत के अभिनेता होने की वजह से चर्चा में है। अनेक लोगों का यह मानना कि संत ऐसा न करें, हम इससे सहमत नहीं है।  हमारा मानना है कि हमारे देश के युवा संतों को अब फिल्म बनाना चाहिये। हमारे यहां जो मुंबईया फिल्म का स्थापित ढांचा है वह उत्तर भारत के हिन्दी युवाओं को प्रोत्साहित नहीं करता दूसरा यह कि वह अब जड़ हो गया है।  इसके अलावा उनके धन के साधन भी संदेहास्पद माने जाते हैं। यही कारण है कि वहां ऐसी फिल्में बनती हैं जिसमें विवाद होते हैं। फिल्म बनाने में पैसा लगता है। हमारे अनेक संतों के पास ढेर सारा पैसा है वह इसी तरह नायक का अभिनय कर फिल्म बनायें तो यकीनन ज्यादा लोकप्रिय हो जायेंगे।  संभव भारतीय धर्म का प्रचार भी बढ़े।  हम याद रखें कि हमारे देश में पाश्चात्य संस्कारों के प्रचार में फिल्मों का ही योगदान रहा है।
            हम जिन संत की बात कर रहे हैं उनका नाम हम जानते थे।  उन पर अनेक आरोप भी लग चुके हैं पर हमारे बौद्धिक दृष्टिपथ में वह फिल्म के प्रचार की वजह से ही आये हैं। उनके साक्षात्कार पहली बार सुने। यकीनन प्रभावी व्यक्तित्व के स्वामी हैं और ऐसे ही दस बीस संत प्रचार तंत्र पर छा जायें तो मुंबईया फिल्मों का हिन्दी दर्शकों पर कम हो सकेगा।    

लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
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Saturday, December 20, 2014

नयी रौशनी और पुराना दीया-हिन्दी कविता(nayi roshani aur purana deeya-hindi poem)



कभी ढेर सारे सोने का
लालच मेरे दिल में
चुभा रहे हो।

कभी अच्छे पकवान
आंखों के सामने सजाकर
जीभ लुभा रहे हो।

कहें दीपक बापू सच बताओ
नयी रौशनी का दिखाओगे
मेरे घर का जलता हुआ
पुराना दीया जो बुझा रहे हो।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
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Sunday, December 14, 2014

समाधि विवाद पर पाश्चात्य विज्ञान के तर्क आवश्यक नहीं-हिन्दी चिंत्तन लेख(samadhi vivad par pashchatya vigyan ke tarka avashyak nahin-hindi thought article)




            एक प्रतिष्ठित संत की हृदयाघात से निधन हो गया।  उसे चिकित्सकों के पास ले जाया जिन्होंने उसे मृत घोषित कर दिया। जैसा कि हम जानते हैं कि हमारे देश में धर्म के नाम एक ऐसी परंपरा भी है जिसमें भक्तों से दान लेकर आश्रम बनाकर स्वयंभू गुरु स्वयं को भगवान का रूप घोषित कर देते हैं।  अनेक गुरु तो ऐसे हैं कि राजाओं की तरह सिंहासन पर विराजकर भक्तों को प्रजा की तरह संबोधित करते हैं-इससे उनके अंदर की राजसी महत्वांकाक्षा शांत होती है यह अलग बात है कि वह सात्विक दिखने का प्रयास करते हैं। उनके शिष्य अपने गुरु के राजसी भाव को सात्विकता के वस्त्र प्रहनाने लगते हैं। हैरानी तब होती है जब त्रिगुणमयी माया के समंदर मे आकंठ डूबे इन लोगों को महान योगी कहा जाता है।
            बहरहाल इन कथित संत की देह को  शिष्यों ने बाद में शीत यंत्र में डाल दिया ताकि वह सड़े नहीं।  अब टीवी चैनलों पर पंद्रह दिन से बहस हो रही है।  हम जैसे योग तथा गीता साधकों के लिये खाली समय में टीवी देखने के अलावा कोई दूसरा स्वाभाविक कर्म नहीं होता।  इस पर बचपन से द्वंद्वों से भरे समाचार सुनने और पढ़ने की गंदी आदत इस काम के लिये हमेशा प्रेरित करती है।  अब मुश्किल यह है कि पतंजलि योग तथा श्रीमद्भागवद् गीता का अध्ययन कर लिया जिससे अध्यात्म और धर्म पर एक वैचारिक स्वरूप बना है। जब बाहर देखते हैं तो ऐसा लगता है कि धर्म के नाम पर इतना पाखंड है कि कहीं किसी ज्ञानी के होने की कल्पना करना भी कठिन है।  वेद, पुराण, रामायण, गीता और अन्य प्राचीन ग्रंथों के शब्द यहां इस विद्वानों के मुख इस तरह दोहराये जाते हैं कि हृदय प्रसन्न हो जाये पर बहुत जल्दी  सुखांत अनुभूति यह देखकर निराशा में बदल जाती है कि उनके अर्थों की व्याख्या एकदम सांसरिक विषयों से जुड़ी होती है।
            बहरहाल एक कथित धार्मिक बुद्धिमान ने यह दावा किया आज के वैज्ञानिक युग में संत के देहावसान को समाधि  नहीं माना जा सकता।  हमारा तर्क यह भी है कि इस देहावसान को समाधि न मानने के पीछे आज के विज्ञान का तर्क जरूरी नहीं है यह तो हम जैसा तुच्छ व्यक्ति पतंजलि योग के आधार पर वैसे ही कह सकता है यह समाधि नहीं है।  दरअसल इस तरह संत के शव को रखने के  पीछे संपत्ति का झगड़ा भी नहीं हो सकता पर गद्दी का विवाद जरूर है।  हर संत के देहावसान के बाद उसका प्रिय शिष्य गद्दी पर बैठता है।  अधिकतर संत  पहले ही इसे घोषित कर देते हैं। पहले भी अनेक संत हुए जिन्होंने अपने संगठन का उतराधिकारी घोषित किया।  यह पंरपरा सिख धर्म से ही आयी लगती है।  सिखों के गुरु हमेशा ही अपना उतराधिकारी घोषित कर देते जिससे बाद में कोई विवाद नहीं हुआ। दसवें गुरु श्रीगोविंद सिंह जी ने इस परंपरा को समाप्त करते हुए अपने पश्चात् शिष्यों के समक्ष गुरुग्रंथ साहिब को ही गुरु मानने का आदेश दिया।
            सिख आज भी गुरु ग्रंथ साहिब को ही गुरू मानकर चलते हैं। सिख धर्म को आजकल राजनीतिक कारणों से हिन्दू धर्म से अलग माना जाता है पर वास्तविकता यह है कि यह एक पंथ है जिसकी एक संगठन के रूप में स्थापना हुई थी। इस तरह सिख पंथ की संगठन के रूप में चलने की परंपरा देश में अन्य पंथों की प्रेरणा बनी।  हिन्दू धर्म के अंदर ही अनेक पंथ बन गये हैं जिनके गुरु अपने अंदर भगवान की तरह पुजने की इच्छा रखते हैं। यह गुरु धन, शिष्य तथा अन्य साधनों का संचय करते हैं। जो अपने जीवनकाल में अपना शिष्य घोषित करते हैं उनके संगठन बच जाते हैं जहां नहीं करे वह अनेक नाटक प्रारंभ हो जाते हैं। इन कथित संत की समाधि का नाटक भी इसी तरह का है। उनकी मृत्यु को समाधि बताने के पाखंड का अत पता नहीं कब होगा पर इसकी आड़ में भारतीय धर्म को बदनाम खूब किया जा रहा है। खासतौर से विज्ञान का नाम लेकर यह साबित किया जा रहा है कि हमारे अध्यात्मिक दर्शन में उसका कोई स्थान नहीं है। जबकि पंतजंलि योग के आधार पर कोई भी कह सकता है कि यह समाधि नहीं है। इस विषय में पाश्चात्य विज्ञान की आवश्यकता उन लोगों को है जो पतंजलि योग को विज्ञान नहीं मानते।
            हमारे यहां आजकल विज्ञान की बात इस तरह कही जाती है जैसे कि उसका हमारे देश में कभी अस्तित्व ही नहीं रहा। जबकि रामायण और महाभारत काल के दौर में जिस तरह के अस्त्रों शस्त्रों का प्रयोग युद्धों में हुआ उससे ऐसा लगता है कि उस समय भी विज्ञान का महत्व था।  कुछ लोग कह सकते हैं कि इससे विज्ञान के महत्व का पता नहीं चलता तो इसका जवाब यह है कि जिस पाश्चात्य विज्ञान के के आधार पर अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रंास का गुणगान करते हैं वह हथियारों की वजह से ही प्रमाणिक माना जाता है। वैसे भी श्रीमद्भागवत गीता में विज्ञान का महत्व ज्ञान के समकक्ष ही माना गया है।
लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
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Sunday, December 07, 2014

अर्थ अपराध की बढ़ती दर-हिन्दी कविता(arth aparadh ki dar-hindi kavita)



अर्थ की विकास दर
आकाश  में जितनी ऊंची होगी
ज़मीन पर अपराध का
पैमाना भी बढ़ जायेगा।

काले कारनामों से
तिजोरी भरने वाले सफेदपोश
जितने रचेंगे स्वांग
काली नीयत वाला भी
उतने ही वेश बनायेगा।

कहें दीपक बापू विकास पथ पर
चला रहे समाज
काले धन वाले,
ईमानदार घर बचाने के लिये
ढूंढ रहे मजबूत ताले,
पैसे और मदिरा के नशे में
डूबे लोगों की खबर नहीं
कौन कहां कहर बरपायेगा।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
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