Friday, February 20, 2015

मजे के ठेकेदार-हिन्दी कविता(maze ke thekedar-hindi poem)



रौशनी के सौदागर

कभी अंधेरों से

नहीं लड़ा करते हैं।



पैसा लेकर मजे

बेचने वाले

कभी आफतों से

नहीं लड़ा करते हैं।



कहें दीपक बापू भलमानस

रहते हैं खामोश

ज़माने का भला

करने वाले ठेकेदार

कभी बुराई से

नहीं लड़ा करते हैं।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
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Sunday, February 08, 2015

पाखंड से पैदा मद-हिन्दी कविता(pakhand se paida mad-hindi poem)



आकाश में उड़ते पक्षी भी
पेट भरने के लिये
जमीन पर उतर आते हैं।

जिन इंसानों के पेट
भरे है चिकनी रोटी से,
जेब भरी है गरीब की बोटी से,
उड़ने लगते हैं
उनके दिमाग और पांव
आकाश में
गिरने से पहले तक
वह होश में नहीं आते हैं।

कहें दीपक बापू ज्ञान के रथ पर
सवारी सभी को करना
सभी को नहीं आती,
पाखंड से पाते जो मक्खन
सच की कमाई से मिली
सादा रोटी उनको नहीं भाती,
पद प्रतिष्ठा और पैसे के मद में
अपनी वह छाती फुलाते
गिरने पर
सर्वशक्तिमान की मर्जी बताते हैं।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
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