Friday, March 27, 2015

क्रिकेट पर हास्य कविता-हिन्दी कविता(cricket and comedy poem)




पर्दे पर क्रिकेट मैच
देखते हुए होश संभाला
पता लगा कि
पटकथा लिखकर खेला जाता है।

गेंद बल्ले का द्वंद्व
मन बहलाने के लिये
ठेला जाता है।

कहें दीपक बापू हार जीत से
खेल को जोड़ा जाता है,
कहते हैं सट्टे के दम पर
परिणाम भी मोड़ा जाता है,
हैरान क्यों होते हम
हास्य लिखकर
कभी कभी दर्द झेला जाता है।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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Sunday, March 22, 2015

ख्वाबों का सागर-हिन्दी शायरियां(khawabon ka sagar-hindi shayriyan)




बंद कर दिये
उन्होंने सोच के दरवाजे
कुछ करने के इरादे भी
दिल से निकाल दिये हैं।

कहें दीपक बापू गुलामी पर
फिदा हो गये जो लोग
उन्हें आजादी का मतलब
नहीं समझा सकते
बाहर से आती हवाओं के
खौफ से उन्होंने
घर के दरवाजे
बंद कर लिये हैं।
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जिंदगी का सच-हिन्दी कविता
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भरोसे पर टिकाये रखी
हमेशा ही जिंदगी की इमारत
वादों की बरसात में भी
हम खूब नहाये हैं।

बहुत से जादूगर देखे
ख्वाबों का सागर बनाने वाले
जिसके किनारे कभी
स्वयं  वह न आये हैं।

कहें दीपक बापू समय की धारा में
हम यूं ही बहते रहे,
किसी ने नहीं सुनी
हम अपनी कहते रहे,
सर्वशक्तिमान ने
जितना लिखा भाग्य
सच यह है कि उसी के सहारे
यहां तक आये हैं।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
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Sunday, March 15, 2015

वायदे और कायदे-हिन्दी व्यंग्य कविता(vayde aur kayde-hindi satire poem)




पंचतारा गुफाओं का प्रभाव
अपने पिछलग्गू बनने के
वह भीड़ में
फायदे गिनाते हैं।

राह पर चलते
शेरों की तरह
शिकार में हिस्सा देने के
वायदे भी दिलाते हैं।

कहें दीपक बापू
मंजिल पर पहुंचकर
घुस जाते पंचतारा गुफाओं में
फिर जंगल और शहर की
जिंदगी के कायदे
अलग अलग होने का
फर्क भी  सिखाते हैं।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
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Wednesday, March 04, 2015

आवश्यकताओं के रिश्ते-हिन्दी कविता(avashyakataon ke rishtey-hindi poem)



स्वार्थ से ही लोग
कभी मित्र
कभी शत्रु बन जाते हैं।

इच्छायें पूरी करने के लिये
बनाते बस्तियां
अपनी आवश्यकता हो तो
सामने भी तन जाते हैं।

कहें दीपक बापू मकान में
रहते हैं बहुत लोग
मगर सभी का घर नहीं होता,
बिस्तर मिलता है
पर चैन सभी को नहीं होता,
धर्मशालाओं के मिलते अजनबी
मिलते हैं आत्मीयता से
फिर अजनबी बन जाते हैं।
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