Thursday, May 28, 2015

जड़बुद्धि में चेतना-हिन्दी कविता(jadbuddhi meih chetna-hindi poem)

ग से गधा पढ़ायें कि गणेश
इस पर विद्वानों में
वाद विवाद हो जाता है।

अपढ़ के लिये हिन्दी का
काला अक्षर भैंस बराबर
शिक्षित भी गोरों की एबीसीडी से
बकरी जैसा गुलाम हो जाता है।

कहें दीपक बापू उपाधियों पर
चाहे जो छाप लगी हो
शिक्षितों की जड़बुद्धि में
चेतना का बीज बोना
कठिन हो जाता है
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
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Saturday, May 23, 2015

बेपरवाह हो जाओ-हिन्दी कविता(beoravah ho jao-hindi poem)

हमसे बेपरवाह है जो लोग
उनकी चिंता करना बेकार
इंसानों की आंखों से ज्यादा
अक्ल पर धूल जमी है।

न पत्थर बुरा
न हीरा अच्छा
सांस लेने वाली
 नाक की दोनों में कमी है।

कहें दीपक बापू इंसानों में
न फरिश्ते होते न शैतान
मतलब की आग में
जल गये जज़्बात सभी के
दिल हो गये खाक
अब कहां उनमें नमी है।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
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Saturday, May 16, 2015

सर्वशक्तिमान के नाम पर-हिन्दी कविता(sarvashaktiman ka naam par-hindi poem)


भूखों को भरपेट
भोजन कौन खिला रहा है।

वही जो दान और चंदे के
सहारे खड़े पेड़ों पर
चढ़कर उनको हिला रहा है।

कहें दीपक बापू सारे संसार पर
स्वर्ग बसाने का दावा तो
सर्वशक्तिमान ने भी
नहीं किया
उसके वाक्यों पर
अपनी गद्दियां चलाने वाला
हर दलाल बेबसों को
ताकतवर बनाने का
वहम दिला रहा है।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
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Saturday, May 09, 2015

खाये पीये अघाये लोगों का फुटपाथ पर विलाप-हिन्दी व्यंग्य लेख(khaye peeye aghaye logon ka futpaath pa vilap-hindi satire article)


हिंग्लिश फिल्म के एक गायक को गरीबों के फुटपाथ पर सोने में आपत्ति है क्योंकि एक नायक दारु पीकर गाड़ी चला रहा था जो चार लोगों पर चढ़ गयी। एक मरा तीन घायल! नायक को सजा हुई तो उसके एक समर्थक गायक को इस बात पर ज्यादा आपत्ति थी कि लोग फुटपाथ पर क्यों सोते हैं? बाद में बवाल मचा तो वह माफी मांगते हुए देश की गरीबी पर विलाप कर रहा था।
वैसे फुटपाथ पर पर जो चलते हैं सभी गरीब नहीं होते। हमारा मानना है कि फुटपाथ पर जो सोते हैं वह सब गरीब हो सकते हैं पर भिखारी नहीं होते।  समस्या यह है कि हमारे यहां खाये पीये अघाये लोगों को बौद्धिक विलास करने में आनंद आता है। अपने जैसे लोगों के साथ होने वाले निरर्थक वार्तालाप में उन्हें स्वयं को परोपकारी तथा चिंत्तक प्रमाणित करने के लिये सार्थक जीवन जीने का पाखंड करना ही होता है। ऐसी बैठकों में रुचिकर विषय होता है गरीबों की चिंत्ता।  हमारे देश में गरीबों का कल्याण करने से ज्यादा उनकी चिंत्ता करता हुआ व्यक्ति अधिक लोकप्रिय होता है।
अनेक बार आपने प्रचार में शिखर पर स्थित पुरुषों के चाटुकारों में मुख से सुना होगाहमारे स्वामी तो हमेशा गरीबों की सोचते हैं।’’
गरीबों के कल्याण के लिये उनके स्वामी ने कोई काम किया हो इसका उदाहरण कोई नहीं देता। अगर कोई देगा भी तो इतनी दूर क्षेत्र का देगा जहां उसका प्रत्यक्ष प्रमाण लेने के लिये कोई जा ही नहीं सकता। गया भी तो मिलेगा नहीं। ऐसे में जब कोई आपत्ति उठाये तो जवाब मिलेगा आप गलत पत्ते पर गये थे। हमने तो कोई दूसर जगह बताई थी।
सभी गरीब भिखारी नहीं होते। लगभग यही बात भिखारियों पर लागू है कि वह भी सब गरीब नहीं होते। एक बार इस लेखक ने एक लेख में लिखा था कि भीख मांगना और चोरी करना एक आदत है और कोई मजबूरी में यह नहीं करता।
            उस पर अनेक लोगों ने आपत्तियां कीं। किसी ने समर्थन किया। हमारा कहना था कि राह पर हम अनेक ठेले, खोमचे तथा पटरी पर सामान बेचने वाले लोग देखते हैं। वह गरीब होते हैं पर परिश्रम से कमाते हैं।  धूप, ठंड और बरसात से उनका संघर्ष निरंतर चलता रहता है। हमें तो ऐसे लोगों का सम्मान करना चाहिये क्योंकि वह गरीबी के बीच अपना स्वाभिमान जीवित रखते हैं। अगर वह चोरी, डकैती और भीख जैसे अपराध करने लगें तो फिर सामान्य लोगों का क्या होगा? हमें उनका आभारी रहना चाहिये कि वह समाज का संतुलन बनाये हुए हैं-कुछ लोग अमीर इसलिये कहलाते हैं क्योंकि उनके आसपास गरीब हैं। अगर सभी अमीर हो जायें तो कौन किसी बौद्धिक विलासता झेल जायेगा?
हम एक बार करीब पच्चीस वर्ष पूर्व हरिद्वार गये थे।  बस ने सुबह तीन बजे पहुंचा दिया। हम क्या करते? धर्म शालायें बंद रहती हैं और होटल में रहने लायक हमारी हैसियत नहंी थी। हम रेल के प्लेटफार्म पर ही जाकर सो गये। कभी कभी हमारा कोटा जाना भी होता था। उस समय रेल गुना से आधी रात को मिलती थी। हम कम से कम तीन घंटे प्लेटफार्म पर सोते थे। कहने का अभिप्राय यह है कि सार्वजनिक जगहों में जमीन पर सोने वाले सभी गरीब भी नहीं होते। अलबत्ता एक हमारा अनुभव रहा कि थके मांदे होने पर नींद जमीन पर भी आती थी। फुटपाथ पर सोने वाले गरीब निश्चिंत रहते हैं।  खोने के लिये उनके पास कुछ नहीं है। यहां तक कि उनकी जीवन इतना संघर्षमय रहता है कि उनके पास अमीरों से द्वेष रखने का समय भी नहीं होता। यह अलग बात है कि खाये पीये और अघाये लोगों के पास इतनी फुरसत होती है कि उनकी चिंत्ता पर चर्चा कर समय बिताते हैं।  इतनी चिंता कि वह समाज और सरकार को कोसने लगते हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि उनको इन गरीबों से इस बात का द्वेष हो कि वह इतनी सहजता से निद्रा की गोद में कैसे समा जाते हैं जबकि विलासिता का इतना सामान जुटाने के बावजूद उनकी नींद हराम रहती है।  घर में इतनी बैचेनी कि रात की अंतिम बेला में भी शराब पीकर कार चलाना पड़ती है और यह फुटपाथ सो रहे गरीब मरकर कभी भी उनके लिये अवरोधक बन जाते हैं। परिश्रम के यह नायक जो अमीरों का जीवन संचालित रखते हुए कभी कभी रुपहले पर्दे के कल्पित नायकों को चुनौती देते हैं। उनका यही द्वेष कहीं फुटपाथ पर सोने वालों को कोसने के लिये तो प्रेंरित नहंी करता?
     मूलतः फुटपाथ पैदल चलने वालों के लिये होती है। दिन  में पैदल अधिकतर गरीब ही चलते हैं अगर वह रात को उस पर सोते हैं तो वह उनके सहवर्ग के लोगों को ही आपत्ति करना चाहिये न कि खाये पीये अघाये लोग उन पर प्रतिकूल टिप्पणियां करने लगें।

लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
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Sunday, May 03, 2015

मुफ्त के हंसी-हिन्दी कविता(muft ki hasni-hindi poem)


शांति की बहती धारा पर
 कोई चर्चा नहीं करता
दिल टूटने की खबर
दूर तक जाती है।

खुशियां लोग नहीं बांटते
गम बांटने की ख्वाहिश
सभी के दिल में आती है।

कहें दीपक बापू हसीन सपने
व्यापारी अपनी दुकानों में
सजाते हैं,
 कीमत लेकर गमों की
 वजह से बचाते हैं,
रोने वालों के इर्द गिर्द
एकत्रित हो जाती भीड़
मुफ्त में हंसी ढूंढने वालों से
दुनियां मुंह फेर जाती है।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
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