Sunday, June 28, 2015

प्राचीन संस्कार नवीन पाखंड-हिन्दी कविता(prachin sanskar naivin pakhand-hindi poem)

न सोच न समझ
समाज सुधारने के अभियान
नारों के सहारे चला रहे हैं।

अंधेरे  से दूर रहकर
चमकदार इलाकों में
प्रकाश जला रहे हैं।

कहें दीपक बापू चिंत्तन करते
विक्रय योग्य आस्था के उत्पादक,
 प्रभावहीन हैं उनके वाक्य
शब्द जरूर है मादक,
प्राचीन संस्कारों में
नवीन पाखंड ढला रहे हैं।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
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Tuesday, June 23, 2015

दानियों को बेरहमों ने ठगा है-हिन्दी कविता(daniyon ko berahamon ne thaga hai-hindi poem)

काले कारनामे वालों के आगे
सफेदपोश बुतों का
पहरा लगा है।

नैतिकता और आदर्श पर
होती हैं व्याख्यानमालायें
सिद्धांतों का नहीं कोई सगा है।

कहें दीपक बापू लाचारा आदमी से
मुसीबत पर बुरा से बुरा
सवाल होता है,
दबंग पर इल्जाम लगते ही
बवाल होता है,
समाज सेवा भी बन गयी जुआ
दानियों को बेरहमों ने ठगा है।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
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Wednesday, June 17, 2015

उन्मुक्त भाव से जीना-हिन्दी कविता(unmukt bhav se jeena-hindi poem)

गरीब का अपराध
इतना ही है कि
वह पसीना बहाता है।

अमीर का पुण्य है
दाम का डाका डालकर
दौलत का नगीना पाता है।

कहें दीपक बापू पालतु तोते जैसी जिंदगी
जीते लोग
कोई सोने तो कोई लोहे के
पिंजरे में बंद है
विरले ही हैं वह लोग
उन्मुक्त भाव से जीना जिनको आता है।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
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Saturday, June 13, 2015

जवाब कहां मिलता है-हिन्दी कविता(jawab kahan milta hai-hindi poem)


अमृत के साथ
समंदर में
विष भी मिलता है।

विकास के महल में ही
विनाश का पेड भी़
खिलता है।

कहें दीपक बापू बीमार समाज में
बहस जारी है
कौन दर्द पिये कौन दवा,
कौन बिगाड़ रहा है
भोजन जल और हवा,
सभी की आंखें खुली
 पर अक्ल के दरवाजे बंद
जवाब कहां मिलता है।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
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Monday, June 08, 2015

सत्य की कला-हिन्दी कविता(satya ka kala-hindi poem)

संवेदनहीन वातावरण में भी
मुरझाते भावनाओं के वृक्ष में
बहार लाना जरूरी है।

मनुष्यों के मस्तिष्क पर
छाया है स्वार्थ
सभी के हृदय में स्पंदन का
हाल जानना जरूरी है।

कहें दीपक बापू आशा पर
आकाश टिका है,
निराश नहीं होते हम
चाहे अपने घर का प्रकाश
काला बाजार में बिका है,
माया हर दौर में
रूप बदल देती है
पहचान के लिये साथ में
सत्य की कला रखना जरूरी है।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
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Tuesday, June 02, 2015

पुराने बुद्धिमान कह गये-हिन्दी कविता(PURANE BUDDHIMAN KAH GAYE-HINDI POEM)

बड़े के आगे
घोडे़ के पीछे
न चला करो
पुराने बुद्धिमान कह गये।

अर्थतंत्र के नये दौर में
जो न सेठ न घुड़सवार बने
चाटुकारिता की धारा में
तैरते हुए बह गये।

कहें दीपक बापू स्वाभिमान से
जिंदगी गुजारना
सहज भाव से ही संभव है
अभिमानियों की सेवा
करते करते कई चमचे
अपमान की धारा में बह गये।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
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