Monday, September 28, 2015

फेसबुक का महत्व व्हाट्सअप के प्रचलन से कम हुआ(FaceBook ka Mahatva WhatsApp ke prachalan nem kam hua)

             हमारा अंतर्जालीय अनुभव कहता है कि व्हाट्सअप के उदय के बाद फेसबुक की स्थिति गिरावट की तरफ बढ़ रही है। फेसबुक पर सामग्री कंप्यूटर पर ज्यादा सहज है जबकि व्हाट्सअप स्मार्टफोन के कारण ज्यादा चल रहा है। फेसबुक से व्यापक संपर्क की सुविधा है पर भारत में लोग अपने सीमित संबंधों पर निर्भर रहने की इच्छा से व्हाट्सअप की तरफ जा रहे हैं। हम जब फेसबुक पर चैट वाले स्तंभ पर नज़र डालते हैं तो अधिकतर मित्र मोबाइल पर सक्रिय दिखते हैं। हमारे परिचितों में अनेक युवा मोबाइल से ही फेसबुक पर सक्रिय रहे हैं पर अब वह व्हाट्सअप पर संपर्क रखना चाहते हैं।  पहले ब्लॉग पर तो परिचित इंटरनेट  की सुविधा होने के बावजूद हमारे साथ नहीं जुड़े। हमने दूसरों की देखा देखी फेसबुक पर सक्रियता बढ़ाई पर अब व्हाट्सअप के आने के बाद ऐसा लगता है कि हम अपने निजी संपर्क खो रहे हैं।  फेसबुक पर जहां अपने तथा दूसरे लोगों से संपर्क रखने की सुविधा थी उससे हम जो आनंद उठा रहे थे वह व्हाट्सअप के आने से कम हो गया है। कहने को फेसबुक के 1 अरब सदस्य है पर उनकी सक्रियता में कमी दर्ज की गयी कि पता नहीं पर हमारा मानना है कि कम से कम भारत में तो इससे मोहभंग हो रहा है।
दुनियां में सभी तरह का आतंकवाद विश्व में राज्य प्रबंध से प्रायोजित है इसलिये मगर विदेशी रणनीतिकार इसे अपनी सुविधा से छिपाते और बताते हैं। विकसित देशों में निर्मित हथियार आतंकवादी भी खरीदते हैं इसलिये उनसे अच्छे बुरे की पहचान की आशा बेकार  लगती है। जब विकासित राष्ट्र अच्छे बुरे आतंकवाद की पहचान समझ लेंगे उस दिन ही इस समस्या का हल होगा। पाकिस्तान आंतक निर्यात से धन अर्जित करता है, जब उसे दंड नहीं मिलेगा वह चुप नहीं बैठेगा। होटल, विमानन और रेल का निजीकरण पूरी तरह तभी किया जाये पहले उपभोक्ता संरक्षण नियम मजबूत हों। वरना आमजन को परेशानी होगी।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
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Sunday, September 20, 2015

विश्वास की कमी-हिन्दी कविता(Vishwas ki kami-hindi poem)

इंसान की आस से
भरी नज़र
इंसानी नीयत पर ही जमी है।

वफा निभाये कौन
पूरे ज़माने में
आपसी विश्वास की कमी है

दीपकबापूवफा कर नहीं सके
अपनी लाचारियों से ही थके
किसे सुनायें अपनी कहानी
सभी की जिंदगी
दौलत के दरवाजे तक ही थमी है।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
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Sunday, September 13, 2015

हिन्दी का अंतरिक्षजाल-हिन्दी दिवस पर कविता(Hindi ka Antrikshjal-HindiDiwas par kavita)


रुपये के पीछे लगे दीवाने
शब्द के अर्थ से
अधिक नहीं जूझते हैं।

भाषा के व्यापारी
आंकड़ों में आंकते लाभ
साहित्य की पहेली
कभी नहीं बूझते हैं।

दीपकबापूकागज के कलमकार
जमीन पर रैंगने के आदी है,
सम्मानों के लिये
राजपथ पर विचरने वाले कीड़े
हिन्दी भाषा के
अंतरिक्षजाल में लाने के वास्ते
अधिक नहीं जूझते हैं।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
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Tuesday, September 08, 2015

उस पर भरोसा नहीं होता-हिन्दी कविता(us par bharosa nahin hota-hindi poem)

देह के पास
पर दिल से जो दूर है
उस पर भरोसा नहीं होता।

वादों में चालाकी
दिखाते हुए न थके
उस पर भरोसा नहीं होता।

कहें दीपक बापू दिल की बात
करता है जब दौलत का भक्त
उस पर भरोसा नहीं होता।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
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