Saturday, January 23, 2016

राजशाही दिलाये दास व दासी-दीपकबापू वाणी (Rajshahi dilaye das v daasi-DeepakBapuWani)

परमार्थ करे ज़माने में दम नहीं, समाज सेवकों की संख्या कम नहीं।
‘दीपकबापू’ भलाई के धंधे मेें सौदागर, फायदा कमाने में कम नहीं।।
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धन की अधिकता बना देती विलासी, राजशाही दिलाये दास व दासी।
चुपड़ी रोटी से भी अनिद्रा दोष, ‘दीपकबापू’ चैन पाये खाकर बासी।।
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पीते हैं गम भूलाने के लिये, लोग सोच झुलाने के लिये।
‘दीपकबापू’ पीये कई घूंट जाम, बेकार सीना फुलाने के लिये।।
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चार कदम सड़क पर चलें  नहीं, मेहनत के सिक्के में ढले नहीं।
‘दीपकबापू’ ताकत घटी चर्बी बढ़ी, फोकट खायें चाहे फले नहीं।।
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पहलेे मदद मांगते हाथ उठाकर, लड़ने आते फिर नया साथ जुटाकर।
‘दीपकबापू’ दोमुंही बातों के साथी, उन्हें खुश करना कठिन सब लुटाकर।।
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हर शहर की बढ़ रही शान, कर्ज से जिंदगी हुई आलीशान।
‘दीपकबापू’ सांस रखे सामान में, टूटने तक बची रहेगी जान।।
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ढूंढ लेते काम से बचने के बहाने, प्रतिकूल बात बदल देते सयाने।
‘दीपकबापू’ उछलकूद की अदा में लगे, अकर्मण्यता में कर्म जताने।।
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हृदय में संवेदना का अभाव, नहीं भरता निर्दयता का घाव।
‘दीपकबापू’ विचार घुमाते रहते, तबाह न करे एकरस भाव।।
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वाहन से होती सड़क जाम, चाहत कर देती दिमाग जाम।
‘दीपकबापू’ लेतेे दूषित सांस, कौन खोले सोच का जाम।।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
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Monday, January 04, 2016

शैतान व इंसान-हिन्दी कविता(Shaitan Insan-Hindi Kavita)

सोने की तश्तरी में
सजने से कंकड़ पत्थर
हीरे नहीं हो जाते।

कांटे प्यार से
सहलाने पर भी
गुलाब नहीं हो जाते।

कहें दीपकबापू लेकर त्रिशुल
डटे रहो पहरे पर
शैतानों के चेहरे भी
इंसानों जैसे होते
वह दयावान नहीं हो पाते।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
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