Tuesday, March 29, 2016

कौन मूर्ख कौन विद्वान-हिन्दी कविता(Kaun Murkh Kaun Vidwan-Hindi Kavita)

दो हाथ दो पांव
दो आंखें दो कान
सभी इंसान एक जैसे लगते हैं।

अंदर झांककर नहीं देखा
कितने सोते
कितने जगते हैं।

कहें दीपकबापू बहस में
भाग लेते बहुत शख्स
कौन मूर्ख कौन विद्वान
तर्क से सभी ठग्ते हैं।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
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Sunday, March 13, 2016

खंजर की हिमायत में शब्दवीर अड़े-दीपकबापूवाणी (Khajar ki Himayat mein shabdveer ade-DeepakBapuWani)


जहां से भी मिले मुफ्त का माल खाते, फुर्सत में हालातों पर चिंता जताते।
‘दीपकबापू’ चालाक शब्दों के सौदागर, आंसु बहाकर भलाई का ठेका पाते।।
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पूरे समाज के दर्द  निवारक बने हैं, शाब्दिक दवा के विशेषज्ञ घने हैं।
‘दीपकबापू’ अपना हाथ जगन्नाथ रहे, पेशेवर दयावान शुल्क से बने हैं।।
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पढ़े कुछ समझें कुछ पर अपनी कहें, भ्रमित शिक्षार्थी सपनों में बहें।
‘दीपकबापू’ किताबी शब्दों के गुलाम, आजाद सोच से सदा डरते रहें।।
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पराये भ्रम में अपनी अक्ल डाली, चालाकी के नाम काली नीयत पाली।
‘दीपकबापू’ भरमा रहे उजाले में, आंखों में लगाकर लालच की जाली।।
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नाव पार लगाने की फिक्र नहीं है, खड़े किनारे पतवार का जिक्र नहीं है।
‘दीपकबापू’ चलना नहीं बतियाना है, भौंदू सवार मंजिल की फिक्र नहीं है।।
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सफेदपाशों की आड़ में कातिल खड़े, खंजर की हिमायत में शब्दवीर अड़े।
‘दीपकबापू’ नाटक की पटकथा लिखते, गरीब नायक के बने सभी गुरु बड़े।।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
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Saturday, March 05, 2016

ज़माने से कैसे छिपाओगे-हिन्दी कविता(Zamane se Kaise Chhipaoge-Hindi Kavita)


कपड़े साबुन से धोलो
मगर नीयत के काले दाग
ज़माने से कैसे छिपाओगे।

अपना दर्द भुला दोगे
मगर अपनी करतूतों का सच
ज़माने से कैसे छिपाओगे।

कहें दीपक बापू निर्भयता की
बात करते हो
अपने कारनामों से
दिल में आया डर
ज़माने से कैसे छिपाओगे।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
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