Saturday, April 30, 2016

सितारों को टूटते देखा-हिन्दी कविता(Sitaron ko Tootte dekh-Hindi Kavita)

एक महल देखा
जहां इंसान भी
मिट्टी के बुत बने खड़े थे।

एक घर देखा
जहां मिट्टी के बर्तन भी
सोने की तरह जड़े थे।

कहें दीपकबापू धरती पर
आसमान को रंग बदलते
देख हैरान न होना
पत्थरों को प्रतिमा
बनते देखा हमने
सितारे भी टूटते देखे
गिरने से पहले जो बड़े थे।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
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Friday, April 22, 2016

परायी नाव पर-हिन्दी कविता (Parayi Naav par-Hindi Kavita)

जिंदगी की राह
कहीं ऊबड़ खाबड़
कहीं समतल है।

जुबान से निकालें
शब्द उतना ही
जितना देह में बल है।

कहें दीपकबापू अपनी सवारी
परायी नाव पर 
करने से पहले जांच लें
कहीं उसमें मझधार में
गिराने को तो नहीं छल है।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
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Wednesday, April 13, 2016

प्रकृत्ति का खेल-हिन्दी कविता(Prikriti ka Khel-HindiPoem)

परवाह नहीं थी
जब आकाश से
बादल बरसे थे।

तब भूल गये
कभी बूंद भर
पानी के लिये तरसे थे।

कहें दीपकबापू प्रकृत्ति का खेल
सदियों से चल रहा है
सूरज की आग से
चंद्रमा भी जल रहा है
इंसान की स्मरणशक्ति क्षीण
लालच में गले लगाता 
उन लुटेरों को भी
जिनके हाथ पहले फरसे थे।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
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