Saturday, June 18, 2016

कांचघर के निवासी-हिन्दी कविता (Men Of GlassHouse-Hindi Poem)


देवता बनने की के प्रयास में
इंसान बड़े अपराध भी
कर जाते हैं।

भय के प्रसाद बांटकर
पुण्य के सागर में
तर जाते हैं।

कहें दीपकबापू नये जमाने में
पहरेदारों के आसरे
कांचघर के निवासी
राहगीरों पर फैंकते पत्थर
घायल मौन पीड़ा लेकर
घर जाते हैं।
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Saturday, June 04, 2016

सोच में सभी की दगा है-हिन्दी कविता(Soch mein Sabhi ki saja hai-HindiKavita)

हितचिन्तक का मुखौटा
लगायें चारों तरफ
जमघट लगा है।

मतलब के हिसाब में
लगी भीड़ सामने
लगता हर कोई सगा है।

कहें दीपकबापू पहचान
सभी की संकट में फंसी है
वफा का अकाल ज़माने में
सोच में सभी के दगा है।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
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