Sunday, September 25, 2016

ऐ दिल तुझे समझाना मुश्किल है-दीपकबापूवाणी (A Dil tujhe samjahan mushkil hai-DeepakBapuWani)


जिंदगी की जीने के तरीके हजार बताने वाले भी आते हैं।
पुरानी किताबों के नुस्खे पवित्र जताने वाले भी आते हैं।।
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अच्छे दिन में अपनी सुधबुध खो देते, बुरे दिन में बस यूं रो देते।
‘दीपकबापू’ हिसाब किताब में बीते दिन, बचे समय में लोग सो लेते।।
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अब अर्थ के लिये शब्द बोले जाते, दाम के लिये ही मुंह खोले जाते।
‘दीपकबापूं’ तय करते मत पहले, फिर स्वार्थ की तराजु पर तोले जाते।।
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 सड़क पर अपनी जय बुलवायें, घर में मय की बोतल खुलवायें।
‘दीपकबापू’ परिवर्तन के वाहक, गरीब से मुफ्त में चंवर झुलवायें।।
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सपने बहुत पर जेब में पैसा नहीं, जीवन पर सोचते वैसा वह नहीं।
‘दीपकबापू’ संघर्ष करते निंरतर, परिणाम कभी चाहत जैसा नहीं।।
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अन्मयस्क लोग हर बार बदल जाते, सभी दिल का हाल छिपाते।
मुश्किल है किसी पर भरोसा करना पर यह ख्याल हम छिपाते।
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ऐ दिल तुझे समझाना
मुश्किल है
दुनियां देखने के लिये
तेरे पास आंखें नहीं
सच यह भी कि
रोक सकें तेरी सोच को
ऐसी सलाखें नहीं है
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कामनाओं के जाल में सभी फंसे हैं, दूसरे की लालच पर भी हंसे हैं।
‘दीपकबापू’ दे रहे त्याग का उपदेश, स्वयं लोभ के कीचड़ में फंसे हैं।
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Wednesday, September 21, 2016

सेवाओं की आवश्यकतानुसार विषयों के स्नातक नियुक्त किये जायें(Reservation In Govt. Services)


            कभी कभी अंतर्जाल पर ऐसे प्रश्न सामने आ जाते हैं जिनके उत्तर हमारे चिंत्तन से भरपूर मस्तिष्क में सदैव मौजूद रहते हैं। वैसे अगर एक दो पंक्ति में चाहें तो उसका उत्तर संबंधित की दीवार पर ही लिख दें पर भाषा की विशेषज्ञता के अभाव में नहीं लिखते। फिर जो ऐसे प्रश्न उठाते हैं उन्हें सीधे उत्तर देने में यह संकोच होता है कि वह हमारी उपाधि या योग्यता पता करने लगें जो भारतीय अध्यात्मिक दर्शन के अध्ययन से अधिक नहीं है। एक तरह से उसके छात्र हैं न कि शिक्षक।
             बहरहाल फेसबुक में ढेर सारे अनुयायियों से जुड़े उन विद्वान ने एक विश्वविद्यालय के चुनाव में विज्ञान संकाय के छात्रों के अन्य संकायों से आधार पर मतदान करने पर यह सवाल उठाया था कि ‘विज्ञान के संकाय के अन्य छात्रों से अलग क्यों सोचते हैं?’
          इस प्रश्न पर सीधे तो नहीं पर अलग से हमारी एक सोच रही है। पुस्तकें मनुष्य की मित्र हैं और जैसे मित्र की संगत होती है उसके गुण उसमें आ ही जाते हैं।  विज्ञान व गणित के सूत्र छात्र के दिमाग में उलझन के बाद सुलझन की प्रक्रिया का दौर चलाते हैं जिससे उसकी बुद्धि में आक्रामकता या उष्णता आती है। एक तरह से बुद्धि तीक्ष्ण हो जाती है। कला, वाणिज्य तथा विधि के अध्ययन करने वालों में वह उष्णता नहीं आती पर शीतलता के कारण उनकी चिंत्तन क्षमता अधिक बढ़ती है।  सीधी बात कहें तो यह कि विज्ञान तथा गणित का अध्ययन मस्तिष्क को तीक्ष्ण करता है जिससे किसी अन्य विषय पर ज्यादा देर तक पाठक सोच नहीं सकता और जबकि अन्य विषय के अध्ययन करने वाला सहजता के कारण ठहराव से चिंत्तन करने का आदी हो जाता है।  यह अलग बात है कि अध्ययन करने के बाद अभिव्यक्त होने की शैली एक बहुत बड़ा महत्व रखती है। वह सभी में समान नहीं होती-किसी में तो होती भी नहीं है। उसका पुस्तकों के अध्ययन से कोई संबंध नहीं है। 
अंग्रेज दुनियां के सबसे अहकारी  माने जाते हैं और उनकी शिक्षा प्रणाली अपनाने के कारण हमारे यहां भी यही स्थिति है। गणित तथा विज्ञान के छात्र जीवन से संबंधित अन्य विषयों में जानते नहीं है और अन्य विषयों के स्नातक अपने अलावा किसी के तर्क को  मानते नहीं है। यही कारण है कि आधुनिक शिक्षा साक्षरता के साथ ही सामाजिक अंतर्द्वंद्वों को भी बढ़ा ही रही है।
आखिरी बात यह है कि हमारा यह भी मानना है कि सरकारी सेवाओं में विषयों के आधार पर लोगों को नियुक्त करना चाहिये। बैंक तथा लेखा सेवाओं में वाणिज्य स्नातक तो प्रबंध में विशेषज्ञता की उपाधि लेने वालों को प्रशासनिक सेवाओं में रखना चाहिये। गणित व विज्ञान के विशेषज्ञों को केवल तकनीकी सेवाओं में रखना चाहिये। उनमें मानवीय संवेनाओं की बजाय नवनिर्माण की क्षमता अधिक होती है जिसकी प्रशासनिक सेवाओं में अधिक आवश्यकता नहीं होती। प्रशासनिक सेवाओं में वाणिज्य स्नातक भी चल सकते हैं क्योंकि प्रबंध उनका विषय होता हैं। कला के स्नातकों का उन सेवाओं में करना चाहिये जहां मानवीय संवेदनाओं की अधिक आवश्यकता होती है। उन विद्वान प्रश्नकर्ता की दीवार पर अपना इतना बड़ा उत्तर रख नहीं सकते थे सो यहां चैंप दिया।
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-दीपक ‘भारतदीप’

Thursday, September 08, 2016

भ्रष्टाचारविरोधी आंदोलन -हिन्दी हास्य कविता (Anti Corruption Movement-Hindi Comedy Poem)

आज हमेें एक कविता हमारे ही एक फेसबुकिए साथी की दीवार पर चिपकी मिल गयी। यह कम से 4-5 चार बरस पहले हमने ब्लाग पर लिख थी ऐसा लगा कि यह आज भी प्रासंगिक है। उसे यहां हम फिर प्रकाशित कर रहे हैं।
-दीपक ‘भारतदीप’
भ्रष्टाचारविरोधी आंदोलन
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समाज सेवक की पत्नी ने कहा
‘तुम भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में
शामिल मत हो जाना,
वरना पड़ेगा पछताना।
बंद हो जायेगा मिलना कमीशन,
रद्द हो जायेगा बालक का
स्कूल में हुआ नया एडमीशन,
हमारे घर का काम
ऐसे ही लोगों से चलता है,
जिनका कुनबा दो नंबर के धन पर पलता है,
काले धन की बात भी
तुम नहीं उठाना,
मुश्किल हो जायेगा अपना ही खर्च जुटाना,
यह सच है जो मैंने तुम्हें बताया,
फिर न कहना पहले क्यों नहीं समझाया।’
सुनकर समाज सेवक हंसे
और बोले
‘‘मुझे समाज में अनुभवी कहा जाता है,
इसलिये हर कोई आंदोलन में बुलाता है,
अरे,
तुम्हें मालुम नहीं है
आजकल क्रिकेट हो या समाज सेवा
हर कोई अनुभवी आदमी से जोड़ता नाता है,
क्योंकि आंदोलन हो या खेल
परिणाम फिक्स करना उसी को आता है,
भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में
मेरा जाना जरूरी है,
जिसकी ईमानदारी से बहुत दूरी है,
इसमें जाकर भाषण करूंगा,
अपने ही समर्थकों में नया जोशा भरूंगा,
अपने किसी दानदाता का नाम
कोई थोडे ही वहां लूंगा,
बस, हवा में ही खींचकर शब्द बम दूंगा,
इस आधुनिक लोकतंत्र में
मेरे जैसे ही लोग पलते हैं,
जो आंदोलन के पेशे में ढलते हैं,
भ्रष्टाचार का विरोध सुनकर
तुम क्यों घबड़ाती हो,
इस बार मॉल में शापिंग के समय
तुम्हारे पर्स मे ज्यादा रकम होगी
जो तुम साथ ले जाती हो,
इस देश में भ्रष्टाचार
बन गया है शिष्टाचार,
जैसे वह बढ़ेगा,
उसके विरोध के साथ ही
अपना कमीशन भी चढ़ेगा,
आधुनिक लोकतंत्र में
आंदोलन होते मैच की तरह
एक दूसरे को गिरायेगा,
दूसरा उसको हिलायेगा,
अपनी समाज सेवा का धंधा ऐसा है
जिस पर रहेगी हमेशा दौलत की छाया।’’

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