Wednesday, October 26, 2016

जनमानस अब कालेधन पर सर्जीकल स्ट्राइक के इंतजार में-अंतर्जाल पर हिन्दी संदेश(Public now has Waiting Surgical Strike on Black Money-Hindi Message on Internet)

                              देख जाये तो जनहित का ठेका कार्यपालिका के पास है जब उससे नाखुश जन न्यायालय जायें और उसके पक्ष में निर्णय आये तो कथित जनसेवक लोग कहते हैं कि न्यायपालिका अतिसक्रिय हो रहा है पर अपनी जिम्मेदारी की नाकामी कभी नहीं स्वीकारते।  जनहित याचिका पर न्यायालय जब टोल टैक्स को गलत ठहरता है तो प्रश्न यह है कि कार्यपालिका आखिर ऐसी अवैध वसूली रोकने के लिये क्या कर रही थी?
राज्य प्रबंध अब किसकी जेब में होगा-औद्योगिक घराने की उठापठक पर चर्चा

                       जहां तक हमारी जानकारी भारत के नंबर एक व्यवसायिक समूह के स्वामी चार वर्ष पूर्व भारत से अमेरिका चले गये-जाते जाते अपना पद एक अन्य व्यक्ति को सौंप गये।  अब अचानक वापस लौटे और फिर उस व्यक्ति को पद से हटाकर फिर स्वयं विराजमान हो गये।  कारण जो बताये और सुनाये जा रहे हैं उससे अलग  कोई दूसरी बात भी हो सकती है।  हमारे पत्रकारिता के गुरु ने हमें सिखाया था कि असली लेखक या पत्रकार वही है जो तस्वीर के पीछे जाकर देखता और सोचता है।  लोग तो अपनी बात अपने हिसाब से कहते हैं पर विद्वान को उनकी बातों के पीछे जाकर देखना चाहिये।  उस व्यवसायिक समूह के बारे में हमारी कुछ अलग ही सोच है।
चार वर्ष पूर्व भारत की राजनीतिक और आर्थिक स्थिति अलग थी।  तब यहां का राज्य प्रबंध मिमियाते लोगोें के हाथ में था तो आर्थिक हालत भी बहुत संघर्षपूर्ण थी।  अब हालात बदले हैं।  ऐसा लग रहा है कि भारत न केवल सामरिक वरन् राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक क्षेत्र में-हिन्दुत्व के सिद्धांतों के साथ- विश्व में एक महाशक्ति बनने की तरफ अग्रसर हैं।  हमारा तो अनुमान है कि अगले पांच से दस वर्षों में अनेक ऐसी घटनायें होंगी जिसका अभी कोई अनुमान नहंी कर रहा पर यह सभी भारत के अभ्युदय में सहायक होंगी।  नंबर एक व्यवसायिक के स्वामी ने संभवत भारत वापसी इसी उद्देश्य से की है कहीं वह इस देश में एतिहासिक रूप से अप्रासंगिक न हो जायें। वैसे अभी तक बड़े व्यवसायिक घरानों में इतनी ताकत है कि वह राज्य प्रबंध को अपने अनुसार प्रभावित करते हैं।  इस स्वामी के अमेरिका जाने का कारण यह भी हो सकता है कि उस समय इनके एक प्रतिद्वंद्वी व्यवसायिक घराने का दावा था कि उसके जेब में पूरा राज्य प्रबंध है-इसे चुनौती देना इस स्वामी के लिये संभव नहीं था क्योंकि उसी समय इनकी एक महिला अधिकारी भी एक टेपकांड में फंसी थी। प्रचार में विवादों से बचने के लिये भी इस स्वामी ने नेपथ्य में गमन किया होगा।  अब सब ठीक हो गया तो लौट आयें।  बाकी तो अंदर जाने क्या क्या चलता है? इन्हीं की जनसंपर्क अधिकारी के टेप से यह बात पता चली थी।
--
                        कालेधन वालों को सर्जीकल स्ट्राइक की चेतावनी! गुरु अगर ऐसा हुआ तो दृश्य अपने ही देश में दृश्यव्य होने के साथ ही लंबा होगा जिसकी प्रतीक्षा लोग ऐसे ही करेंगे जैसे पाकिस्तान के विरुद्ध चाहते थे। वैसे यह चेतावनी अभी ज्यादा गंभीर नहीं लग रही थी पर कीं उस पर अमल हो गया तो बड़े बड़े औद्योगिक इसकी लपेट में आ सकते हैं।
                  राजनीति में लोकतांत्रिक दलों स्वामित्व जिस तरह चंद परिवारों के इर्दगिर्द सिमट गया है उसे देखते हुए उन्हें एक चुनाव चिन्ह से पंजीकृत नहीं करना चाहिये।  सर्वोदयी नेता स्व.जयप्रकाश के गैरदलीय लोकतंत्र प्रणाली अपनाने का जो सुझाव दिया था उसे अब मान लेना चाहिये। यह नहीं किया जा सके तो कम से कम चुनाव चिन्ह का दलों के लिये संरक्षण समाप्त करना चाहिये।
------
                   भारत के उन सभी खिलाड़ियों को ढेर सारी बधाई जिन्होंने कबड्डी का विश्व जीत लिया। अभी तक विदेशी गुलामी के प्रतीक क्रिकेट खेल वाली टीम को बड़े बेमन से किसी जीत पर बधाई देते थे पर आज हृदय से भारतीय कबड्डी टीम को ईरान पर 48-39 से हरा कर विश्वकप जीतने पर बधाई देते हैं।
भारतीय कबड्डी टीम को विश्व कप जीतने पर बधाई।  हमारे लिये यह विजय क्रिकेट के विश्व कप से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि वह इंग्लैंड का तो कबड्डी हमारा परंपरागत तथा वास्तविक पहचान वाला खेल है।
                 प्रगतिशील और जनवादियों की संगत कर चुके पत्रकार कभी नहीं समझ पायेंगे कि जब ए दिल है मुश्किल जैसी समस्या हो तो दो दुश्मनो के बीच पंचायत कर उन्हें आगे लड़ने के लिये प्रेरित भी किया जाता है।  इधर  एक तरफ राष्ट्रवादियों को रखिये और दूसरी तरफ सुलहनामा तो समझ में आ जायेगा कि दोनों ही पक्ष कभी उनके अनुकूल नहीं रहे।  इधर राष्ट्रवादी जनमानस की विवाद में अधिक रुचि नहीं रही थी  तो शीर्ष पुरुष निपटाने के लिये सुलहकार बन गये। इससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहिष्णु छवि भी बनी और देश में अपने ही दो विरोधियों को सदा के लिये आपस में लड़ा भी दिया।
--
नोट-खाली समय में लिखे गये इस संदेश का ‘ऐ दिल है मुश्किल’ पर हुए समझौते से कोई लेना देना नहीं है। 
 भारत के डेबिट कार्ड का डाटा चीन में चुराया गया है-यह बात कही जा रही है।  अगर प्रमाण मिल जायें तो चीन के सामने यह मामला राजकीय स्तर पर उठाया जाना चाहिये।  वहां के नेता नाराज होंगे इस बात की चिंता किये बिना यह मामला उठाना चाहिये। अगर वह सही जवाब न दें  तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी इसके विरुद्ध प्रचार करना होगा।  अपनी सुरक्षा करने की बात सही है पर आक्रमणकारी को भी चेतावनी देना ही चाहिये। 
-- 
डेबिट कार्ड का विवरण चोरी होने का केवल यह अर्थ भी कदापि नहीं है कि उसमें से केवल धनराशि निकाली जाये वरन् अपराधियों को भी इसकी जानकारी देकर भी खाताधारक के लिये खतरा पैदा किया जा सकता है।  प्रारंभिक जानकारी में चीनी हैकर पर संदेह जताया जा रहा है।  अगर प्रमाण हों तो चीन से बात की जानी चाहिये। अभी तक चीन की छवि आतंकियों के मुंहजुबानी समर्थन तक ही खराब है अगर प्रमाण देने पर वह कार्यवाही नहीं करता तो फिर यह दुनियां को बताना पड़ेगा कि वह पाकिस्तान का मित्र नहीं वरन् सगा भाई है।  वैसे विश्व के अनेक अर्थशास्त्री मानते हैं कि चीन के विकास में अपराधियों के काले धन की महत्ती भूमिका है जिसमें भारत से फरार और अब पाकिस्तान में बसे एक डॉन का लिया जाता है। 
 हमारा मानना है कि करण जौहर का फिल्म  ए दिल मुश्किल पर ज्यादा विवाद खड़ा करना ठीक नहीं है।  हमें तो उसके प्रसारण पर पहले भी कोई आपत्ति नहीं है पर ऐसा लगता है कि प्रचार माध्यमों ने आपस में एका कर उसकी छवि बना ली है-उसका वह बयान अब वह नहीं दिखा रहे  जिसने आग में घी डालने का काम किया था।  हमें याद है एक संगठन ने पाक कलाकारों को देश छोड़ने की धमकी दी थी तो पुलिस ने उसे चेतावनी भी दी कि किसी कलाकार को कुछ हुआ तो वही जिम्मेदार होगा।  करण जौहर ने जबरन अपनी हेकड़ी दिखाई थी कि ‘कलाकारों को राजनीति से नहीं जोड़ना चाहिये’, उसके बाद ही विवाद बढ़ गया था। बहरहाल अब इस पर अधिक विवाद भारतीय समाज की छवि के अनुकूल नहीं है।
-----
   भारत के रणनीतिकारों की प्रशंसा करना चाहिये कि उन्होंने राजकीय तौर पर पाकिस्तान के विरुद्ध कोई प्रतिबंध नहीं लगाया। यह काम निजी क्षेत्र के राष्ट्रवादी स्वतः कर रहे हैं।  जबकि पाकिस्तान को भारत के विरुद्ध राजकीय तौर पर ‘भारतीय सामग्री के प्रदर्शन’ पर रोक लगानी पड़ी।  स्पष्टतः यह सेना के दबाव में हुआ है। इसके साथ ही यह तय हो गया कि  पाकिस्तान अब सीधे चीन का दूत बनकर भारत के सामने सीना तानकर भिड़ने आ रहा है। भारत ने पाक कलाकारों का वीजा नहीं रोका। न ही चीन के सामान पर प्रत्यक्ष कहीं रोक लगाई। निजी क्षेत्र स्वतः ही राष्ट्रवादी हो रहा है। समस्या चीन और पाकिस्तान के साथ हो रही है जहां लोकतंत्र दिखावे का है। दोनों ही देश भारत के विरुद्ध सक्रियता के लिये सरकार पर निर्भर हैं।  कम से कम यह तो प्रमाणित हो गया कि भारत सरकार कभी पाक तथा चीन की तरह हल्के निर्णया नहीं लेती-निजी क्षेत्र की जिम्मेदारी उस पर नहीं डाली जा सकती।
राम का नाम तो ऐसा है कि आदमी की जीवन नैया पार लगा देता है फिर चुनाव क्या चीज है? हालांकि राममंदिर का विषय सामान्य जनमानस को पहले की तरह प्रभावित नहीं करता।
---

Tuesday, October 11, 2016

आतंकियों के मददगार पाकिस्तान और चीन को चिंता करना ही चाहिये-हिंदी संपादकीय (Pakistan and china Afraid From India-Hindi Editiorial)


                लखनऊ के एशबाग में जो प्रधानमंत्री मोदी ने कहा उसे अभी भी कुछ लोग हल्के ले रहे हैं पर चीन और पाकिस्तान को डरना ही चाहिये।  भारत में पाकिस्तान और चीन के जो समर्थक छद्म रूप रखकर भारतीय गरीबों के मसीहा बनते हैं वह फिर भाषण के खतरनाक संकेत नहीं समझेंगे-पहले भी नहीं समझे थे। कहते हैं न कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते। अपने भारतीय समर्थकों के हल्केपन की उपेक्षा करते हुए इन दोनों देशों को अब  चिंता करनाही  चाहिये। बेहतर हो कि चुपचाप भारत की मान लें वरना उनके भारतीय समर्थकों को मुंह छिपाकर भागते हुए भी देर नहीं लगती।
            चिंता करने वाली दो बातें हैं-
                    पहली पाकिस्तान के लिये यह कि ‘आतंकवादियों को मदद करने वालों पर भी छोड़ा नहीं जायेगा-मतलब पाकिस्तान अब अपने पंजाब प्रांत तक सिमट कर रह जायेगा। एक बात तय रही कि पाकिस्तान से पूरा हिसाब चुकता नहीं हुआ है और उसके विरुद्ध अभियान जारी रहेगा।  जिस तरह कश्मीर में हमले हो रहे हैं उससे यही लगता है कि अब वह अपनी तबाही को आमंत्रण दे रहा है।
                  दूसरी चीन के लिये है कि कोई गलतफहमी में नहीं रहे कि वह आतंकवाद से बचा हुआ है-चीन ने अपने यहां के अरेबिक विचाराधारा मानने वाले लोगों कसकर दबाया है।  इस पर वह बुद्ध बाहुल्य है। भले ही चीनी नेता वामपंथी होने का दंभ भरें पर अरेबिक आतंकी वहां अपना परचम फहराना चाहते हैं और वह उसे बुद्धुपंथी ही मानते हैं।  विश्व के सैन्य व अपराधिक विशेषज्ञ मानते हैं कि अरेबिक आतंकी चीन पर भी नियमित हमलों की योजना बनाते रहते हैं।  इस पर चीन ने जिन पाक आतंकियों के साथ संपर्क बनाया है वह कहीं न कहीं अरेबिक आतंकियों के सानिध्य में हैं। अतः एक न एक दिन उसके साथ धोखा होना ही है। 

समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

लोकप्रिय पत्रिकाएँ

विशिष्ट पत्रिकाएँ