Wednesday, September 18, 2013

खबर और आग-हिन्दी व्यंग्य कविता(khabar aur aag-hindi vyangya kavita)



सामने पर्दे पर खबरची टीवी पर
खबरें ही खबरें चल रही हैं,
देखते रहो तो मानस रोऐगा
यह मानकर गोया कि पूरी दुनियां में
आग ही आग जल रही है,
अरे, जल्दी रात को सो जाओ
कुछ खूबसूरत कुछ डरावने सपने
आने को तैयार खड़े हैं
पथराई आंखें खोले बैठे हो
जिनमें नींद करवट बदल रही है।
कहें दीपक बापू
खबरे पहले से आयोजित,
बहसें हैं प्रायोजित,
कपड़े पहने घूमती नारियों की मर्यादा
कभी बाज़ार में बेचने की शय नहीं होती
पर्दे की नायिकायें बनती वही
जो कपड़ों से बाहर झांकते अंगों वाली
तस्वीर में ढल रही हैं,
खबर दर खबर से ज़माना सुधर जायेगा
यह आसरा देते प्रचार के प्रबंधक,
जिनकी नौकरी है बाज़ार के सौदागरों के यहां बंधक,
भूखे को रोटी देने की बजाय
वह उसकी खबर पकायेंगे,
शीतल हवा क्या वह बहायेंगे,
जिनके खाने की  पुड़ी
देशी घी से भरी कड़ाई में
आग पर तल रही है।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
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