Thursday, September 05, 2013

जिंदगी में बेख़ौफ़ डटे हैं-हिंदी शायरी (zindagi mein bekhauf date hain-hindi shayri or poem)



सिर पर ताज सजे
यह ख्वाहिश कभी पाली नहीं
क्योंकि जिनके आगे सिर झुके हैं
उनके सिर कटे भी हैं,
रहने के लिये कोई राजमहल हो
इसका सपना कभी देखा नहीं
क्योंकि जिन्होंने ऐशो-ओ-आराम में
बितायी जिंदगी
उनके पांव जेलों में पहुंचकर फटे भी हैं।
कहें दीपक बापू
किसी ने सच कहा है
दाल रोटी खाओ
प्रभु के गुण गाओ
जिनकी चाल ने दिलाया उनको नाम,
चरित्र के लेकर हुए वही बदनाम,
पैसा, पद और प्रतिष्ठा कमाने के लिये लोग
पाखंड का रास्ता सरल मानते हैं,
अपने ही जाल में कभी फंसेंगे
यह कभी नहीं जानते हैं,
ख्वाब है सभी के आकाश में उड़ने के,
सपने हैं अपना नाम सितारों से जुड़ने के,
सभी के हिस्से में आकाश नहीं आता,
जिनके आया
गिरते हैं वह भी जमीन पर
एक दांत भी उनका सलामत  नहीं आता,
अपनी बात कहते रहें,
दर्द अपना यूं ही सहते रहें,
कोई न सुनता है न पहचानता है,
कम अक्लों से बहस करने से बचते हैं
क्योंकि कोई हमें शायर नहीं मानता है,
अपनी कही खुद ही सुनते हैं,
ऊंचाई पर चढ़ने के ख्वाब कभी नहंी बुनते हैं,
इसलिये जिंदगी की जंग में बेखौफ डटे हैं। 

लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका

४.दीपकबापू कहिन
5.हिन्दी पत्रिका 
६.ईपत्रिका 
७.जागरण पत्रिका 
८.हिन्दी सरिता पत्रिका 
९.शब्द पत्रिका

No comments:

Post a Comment

अपनी प्रतिक्रिया दें