हिंग्लिश फिल्म के एक गायक को गरीबों के फुटपाथ पर
सोने में आपत्ति है क्योंकि एक नायक दारु पीकर गाड़ी चला रहा था जो चार लोगों पर चढ़
गयी। एक मरा तीन घायल! नायक को सजा हुई तो उसके एक समर्थक गायक को इस बात पर
ज्यादा आपत्ति थी कि लोग फुटपाथ पर क्यों सोते हैं? बाद में बवाल मचा तो वह माफी मांगते हुए देश की गरीबी
पर विलाप कर रहा था।
वैसे फुटपाथ पर पर जो चलते हैं सभी गरीब नहीं होते।
हमारा मानना है कि फुटपाथ पर जो सोते हैं वह सब गरीब हो सकते हैं पर भिखारी नहीं
होते। समस्या यह है कि हमारे यहां खाये
पीये अघाये लोगों को बौद्धिक विलास करने में आनंद आता है। अपने जैसे लोगों के साथ
होने वाले निरर्थक वार्तालाप में उन्हें स्वयं को परोपकारी तथा चिंत्तक प्रमाणित
करने के लिये सार्थक जीवन जीने का पाखंड करना ही होता है। ऐसी बैठकों में रुचिकर
विषय होता है गरीबों की चिंत्ता। हमारे
देश में गरीबों का कल्याण करने से ज्यादा उनकी चिंत्ता करता हुआ व्यक्ति अधिक
लोकप्रिय होता है।
अनेक बार आपने प्रचार में शिखर पर स्थित पुरुषों के
चाटुकारों में मुख से सुना होगा‘हमारे स्वामी तो हमेशा गरीबों की सोचते हैं।’’
गरीबों के कल्याण के लिये उनके स्वामी ने कोई काम किया
हो इसका उदाहरण कोई नहीं देता। अगर कोई देगा भी तो इतनी दूर क्षेत्र का देगा जहां
उसका प्रत्यक्ष प्रमाण लेने के लिये कोई जा ही नहीं सकता। गया भी तो मिलेगा नहीं।
ऐसे में जब कोई आपत्ति उठाये तो जवाब मिलेगा आप गलत पत्ते पर गये थे। हमने तो कोई
दूसर जगह बताई थी।
सभी गरीब भिखारी नहीं होते। लगभग यही बात भिखारियों पर
लागू है कि वह भी सब गरीब नहीं होते। एक बार इस लेखक ने एक लेख में लिखा था कि ‘भीख मांगना और चोरी करना एक आदत है और कोई मजबूरी में
यह नहीं करता।’
उस पर अनेक लोगों ने आपत्तियां कीं। किसी ने समर्थन किया। हमारा कहना था
कि राह पर हम अनेक ठेले, खोमचे
तथा पटरी पर सामान बेचने वाले लोग देखते हैं। वह गरीब होते हैं पर परिश्रम से
कमाते हैं। धूप, ठंड और बरसात से उनका संघर्ष निरंतर चलता रहता है।
हमें तो ऐसे लोगों का सम्मान करना चाहिये क्योंकि वह गरीबी के बीच अपना स्वाभिमान
जीवित रखते हैं। अगर वह चोरी, डकैती
और भीख जैसे अपराध करने लगें तो फिर सामान्य लोगों का क्या होगा? हमें उनका आभारी रहना चाहिये कि वह समाज का
संतुलन बनाये हुए हैं-कुछ लोग अमीर इसलिये कहलाते हैं क्योंकि उनके आसपास गरीब
हैं। अगर सभी अमीर हो जायें तो कौन किसी बौद्धिक विलासता झेल जायेगा?
हम एक बार करीब पच्चीस वर्ष पूर्व हरिद्वार गये
थे। बस ने सुबह तीन बजे पहुंचा दिया। हम
क्या करते? धर्म शालायें बंद
रहती हैं और होटल में रहने लायक हमारी हैसियत नहंी थी। हम रेल के प्लेटफार्म पर ही
जाकर सो गये। कभी कभी हमारा कोटा जाना भी होता था। उस समय रेल गुना से आधी रात को
मिलती थी। हम कम से कम तीन घंटे प्लेटफार्म पर सोते थे। कहने का अभिप्राय यह है कि
सार्वजनिक जगहों में जमीन पर सोने वाले सभी गरीब भी नहीं होते। अलबत्ता एक हमारा
अनुभव रहा कि थके मांदे होने पर नींद जमीन पर भी आती थी। फुटपाथ पर सोने वाले गरीब
निश्चिंत रहते हैं। खोने के लिये उनके पास
कुछ नहीं है। यहां तक कि उनकी जीवन इतना संघर्षमय रहता है कि उनके पास अमीरों से
द्वेष रखने का समय भी नहीं होता। यह अलग बात है कि खाये पीये और अघाये लोगों के
पास इतनी फुरसत होती है कि उनकी चिंत्ता पर चर्चा कर समय बिताते हैं। इतनी चिंता कि वह समाज और सरकार को कोसने लगते
हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि उनको इन गरीबों से इस बात का द्वेष हो कि वह इतनी सहजता
से निद्रा की गोद में कैसे समा जाते हैं जबकि विलासिता का इतना सामान जुटाने के
बावजूद उनकी नींद हराम रहती है। घर में
इतनी बैचेनी कि रात की अंतिम बेला में भी शराब पीकर कार चलाना पड़ती है और यह
फुटपाथ सो रहे गरीब मरकर कभी भी उनके लिये अवरोधक बन जाते हैं। परिश्रम के यह नायक
जो अमीरों का जीवन संचालित रखते हुए कभी कभी रुपहले पर्दे के कल्पित नायकों को
चुनौती देते हैं। उनका यही द्वेष कहीं फुटपाथ पर सोने वालों को कोसने के लिये तो
प्रेंरित नहंी करता?
मूलतः फुटपाथ पैदल चलने वालों के लिये होती है। दिन में पैदल अधिकतर गरीब ही चलते हैं अगर वह रात
को उस पर सोते हैं तो वह उनके सहवर्ग के लोगों को ही आपत्ति करना चाहिये न कि खाये
पीये अघाये लोग उन पर प्रतिकूल टिप्पणियां करने लगें।
लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।ग्वालियर, मध्यप्रदेश
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