Sunday, September 13, 2015

हिन्दी का अंतरिक्षजाल-हिन्दी दिवस पर कविता(Hindi ka Antrikshjal-HindiDiwas par kavita)


रुपये के पीछे लगे दीवाने
शब्द के अर्थ से
अधिक नहीं जूझते हैं।

भाषा के व्यापारी
आंकड़ों में आंकते लाभ
साहित्य की पहेली
कभी नहीं बूझते हैं।

दीपकबापूकागज के कलमकार
जमीन पर रैंगने के आदी है,
सम्मानों के लिये
राजपथ पर विचरने वाले कीड़े
हिन्दी भाषा के
अंतरिक्षजाल में लाने के वास्ते
अधिक नहीं जूझते हैं।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
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