Saturday, November 28, 2015

जब तक छिपा सच-हिन्दी कविता(Jab Tak Chhipa Sach-Hindi Kavita)

समय की बात है
प्रतिष्ठा के शिखर पर
सुंदर चेहरा दिखाकर
चढ़ जाते हैं।

वाणी से निकलती
जब बेसुरी आवाज
बदनामी के रसातल की तरफ
बढ़ जाते हैं।

कहें दीपकबापू नीयत के खेल में
तभी तक चलती चालाकी
जब तक सच छिपा
पोल खुलते ही बड़ी छवि के पेड़
ताश के पत्ते की तरह
झड़ जाते हैं।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
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