Wednesday, May 11, 2016

राजरोग-हिन्दी कविता(RajRog-Hindi Poem)

संवेदनारहित बाज़ार में
अपना फटेहाल दिल
सभी ने सजा दिया है।

बहरा चुकी बस्ती में
जोर की आवाज में
अपना दर्द बजा दिया है।

कहें दीपकबापू सहृदयता से
ज़माने ने तोड़ दिया नाता
सुविधा के सामनों के सहारे
राजरोग से तय होता पैमाना
किसने कितना मजा लिया है।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
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