ज़माने के पहरेदार सो रहे हैं,
हम भी अपने, मतलब में खो रहे हैं,
किसकी शिकायत किससे करें
अपनी हिफाजत का बोझ यूंॅ ही ढो रहे हैं।
अपने हकों का अहसास सभी को है,
मगर गैरजिम्मेदारी के बीज हम बो रहे हैं।
काम करने से आसान है जोरदार बहस करना
शब्दों से सजे कागज अब कूड़ेदान के दोस्त हो रहे हैं।
पर्दे पर आंख, कान में गीत और रिमोट सभी के हाथ में
मनोरंजन करते लोग, बस कभी यूं हंसते और कभी रो रहे हैं।
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