Tuesday, July 08, 2014

कचड़ा और सफाई-हिन्दी व्यंग्य कविता(kachada aur safai-hindi satire poem's)



जमीन पर चलते हुए लोग
आकाश की तरफ देखकर सोचते हैं
घर की छत पर सितारे सजाने का देखते सपना,
साफ न नीयत है न आंगन
मनोरंजन के गुलाम हो चुके सभी
क्या प्यार करेंगे कुदरत के तोहफे से
पल पल में बदलते ख्याल अपना।
कहें दीपक बापू अपने हाथ से कचड़ा फैलाकर
दूसरे पर डालते सफाई की जिम्मेदारी,
बीमार आदतों के मालिक
क्या करेंगे बदतर हालत के शिकार की तीमारदारी,
चलते फिरते सभी पर टांगों को तमीज नहीं,
सफेदपोश काले कारनामों से करते नहीं परहेज
फिक्र उनको भी है कि मैली न हो जाये कमीज कहीं,
अपने मतलब में मस्त है जमाना
लालच के अलावा कोई नहीं किसी का अपना।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
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