तख्त वहीं रहा हमेशा
उस पर बैठे चेहरे बदलते रहे,
खजानों ने झेला हमलां
बाहर लगे पहरे बदलते रहे,
आम इंसान के बेबस रहने की कहानी एक
नाम बदला पर किरदार एक रहा,
किसी ने अफसाने में
किसी ने गज़ल में कहा,
आसमान से कभी तारा टूटा नहीं,
कोई फरिश्ता ज़मीन पर उतरा नहीं,
सदियों करता रहा इंसान इंतजार।
कहें दीपक बापू
किसे कहें भ्रष्ट,
किसे बतायें इष्ट,
नज़र बंद कर बना रहे लोग अपना नजरिया,
सच से दूर ढूंढ रहे ख्वाब का दरिया,
बाहर के गद्दारों से खौफ नहीं
अंदर के वफदारों से ही हुए हम बेज़ार।
उस पर बैठे चेहरे बदलते रहे,
खजानों ने झेला हमलां
बाहर लगे पहरे बदलते रहे,
आम इंसान के बेबस रहने की कहानी एक
नाम बदला पर किरदार एक रहा,
किसी ने अफसाने में
किसी ने गज़ल में कहा,
आसमान से कभी तारा टूटा नहीं,
कोई फरिश्ता ज़मीन पर उतरा नहीं,
सदियों करता रहा इंसान इंतजार।
कहें दीपक बापू
किसे कहें भ्रष्ट,
किसे बतायें इष्ट,
नज़र बंद कर बना रहे लोग अपना नजरिया,
सच से दूर ढूंढ रहे ख्वाब का दरिया,
बाहर के गद्दारों से खौफ नहीं
अंदर के वफदारों से ही हुए हम बेज़ार।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर मध्यप्रदेश
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर मध्यप्रदेश
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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