Tuesday, January 28, 2014

निम्न प्रकृति के लोग उन्नति पचा नहीं पाते-रहीम दर्शन पर आधारित हिन्दी चिंत्तन लेख(nimna prikti ki log unnati pacha nahin paate-rahim darshan par aadharit hindi chinntan lekh)



      इस संसार में जीवन के अपने नियम है।  मनुष्य देह की सीमा है पर उसकी बुद्धि और मन अत्यंत बृहद रूप से काम करते हैं।  मन की तो कोई सीमा ही नहीं है वह चाहे जहां प्रिय विषय मिले वही चिपकने लगता है।  यहां गरीब और अमीर दोनों ही होते हैं पर दोनों के व्यवहार में अंतर होता है। गरीब याचक भाव से रहता है तो अमीर के मन  अहंकार आ ही जाता है-उनमें कुछ दान भी करते हैं पर ऐसे लोग बहुत कम ही होते हैं।  मूल बात यह है कि हर कोई अपने खान पान, रहन सहन तथा संगत से प्रभावित होता है और फिर वैसा ही उसका व्यवहार, वाणी तथा व्यक्तित्व हो जाता है।  अतः अगर कोई बुरा व्यवहार करता है तो उस पर ध्यान न देकर उसे क्षमा कर देना चाहिये। जिसके अंदर दुष्टता का भाव है उसे सुधारना अत्यंत दुष्कर कार्य है।  अगर कोई बुरा व्यवहार करता है तो उससे बहस करना या समझाना एक तरह से अपना समय नष्ट करना होता है।

कविवर रहीम कहते हैं कि
--------------
जैसी जाकी बुद्धि है, तैसी कहे बनाय।
ताकों बुरो न मानिए, लेन कहां सो जाये।।
     सामान्य हिन्दी में भावार्थ-जिसकी जैसी बुद्धि होती है वैसे ही बात बनाकर वह कहता है। अतः किसी की बात का बुरा न मानिए, आखिर कोई बुद्धि लेने कहां जा सकता है।
जो रहीमओछो बढ़े, तो अति इतिराय।
प्यादे सो फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाये।।
     सामान्य हिन्दी में भावार्थ-जब किसी निम्न प्रकृत्ति का आदमी उन्नति करता है तो उसे अहंकार आ ही जाता है। शतरंज के खेल में प्यादा जब वजीर बन जाता है तब अधिक प्रहार करने लगता है।

      जिसने कभी धन या संपदा नहीं देखी उसके पास अगर वैभव स्वयं चला आये तो उसका अहंकारी होना स्वाभाविक है।  इस संसार में खाना पचाने की ढेर सारी विधियां हैं पर धन पचाने का मंत्र किसी को नहीं आता है। सच बात तो यह है कि जिनका लक्ष्य धन पाना है वह हमेशा ही उस नज़र गढ़ाये रहते हैं और एक दिन संपन्न हो ही जाते है। चूंकि उन्होंने कोई अन्य संस्कार ग्रहण  नहीं किया होता इसलिये उनमें नम्रता का भाव तो हो नहीं सका। जिस तरह शतरंज के खेल में प्यादा वज़ीर होने के बाद अधिक आक्रामक हो जाता है उसी तरह ही जिनके अंदर विशुद्ध रूप से राजसी भाव है, धन सपंदा आने पर वह अहंकारी न हों यह संभव नहीं है। जब हम इस तरह जीवन के नियमों को समझेंगे तब मानसिक तनाव स्वयं ही कम होगा।

----------------


लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका

४.दीपकबापू कहिन
5.हिन्दी पत्रिका 
६.ईपत्रिका 
७.जागरण पत्रिका 
८.हिन्दी सरिता पत्रिका 
९.शब्द पत्रिका

No comments:

समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

लोकप्रिय पत्रिकाएँ

विशिष्ट पत्रिकाएँ