Tuesday, August 05, 2014

आलस्य और विलासिता-हिन्दी कविता(alasya aur vilasita-hindi poem)



लगातार रौशनी में
जीने की आदत
अंधेरे की आशंका से डरा देती है।

प्रतिदिन चुपड़ी रोटी
खाने की आदत
भूख की आशंका से डरा देती है।

हमेशा आसमान में
उड़ने की आदत
जमीन पर पांव पड़ने की
आशंका से डरा देती है।

कहें दीपक बापू इंसान की देह
फंसती है आलस्य और विलासिता में
भोग की राह पर चलने की आदत
रोग की आशंका से डरा देती है।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
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