पर्दे पर नर नारी के
संयुक्त नृत्य करने का
दृश्य लगता हैं रंगीन।
कहीं फिसल लाये पांव
गड़बड़झाला हो जाये तो
विषय हो जाता संगीन।
प्रचार प्रबंधक नारी की
बदहाली पर कभी तरस खाते हैं
कभी भावभीनी अदाओं कर
तालियां बरसाते हैं
साथ में बजाते विज्ञापन की बीन।
कहें दीपक बापू नारी नारी
दोनों ही रचे प्रकृति ने,
भेद कर दिया आकृति ने,
बुद्धिमानों ने बाज़ार की शय
बना दिया
सेठ हो या मज़दूर
पुरुष हमेशा दानव होता
स्त्री होती हमेशा हीन।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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