Tuesday, September 23, 2014

बाज़ार में बिकते शब्द-हिन्दी व्यंग्य कविताUbazar mein dikte shabd-hindi satire poem)



रचनाकार के प्रबंध कौशल से
शब्द जब बाज़ार में
बिकने आते हैं
उनको चमका दिया जाता है।

सौदागरों के दिल को भाये
उनके दाम ज्यादा लगते
चुभने वाले शब्दों को
अकेले में धमका दिया जाता है।

कहें दीपक बापू पढ़ने में
ज़माना कभी आज़ाद नहीं रहा,
शब्द वही चला जो
वस्तु की तरह बाज़ार में बहा,
दिल से निकली रचना का
कोई हिसाब नहीं लगाता,
ज़माने में जाग्रति लाने का दावा
मगन सोये को जगाने कोई
सौदागर नहीं जाता,
कभी खुशी का फैशन होता
शब्द नाचते हुए दिखते
कभी उनको रुलाकर
बहाना गम का किया जाता है।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
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