अर्थ में शक्ति
न हो तो
आदमी चीख कर
शब्द बोलता है।
आशंका इस बात की
लोग ऊंचा ही
सुनते हैं
आदमी चीखकर
शब्द बोलता है।
बुद्धि के
दरवाजे से
लौट आती है सोच
विश्वास नहीं
होता कि
बात का प्रभाव
होगा कि नहीं
आदमी चीखकर शब्द
बोलता है।
कहें दीपक बापू
खामोश आईने में
जब आदमी देखता
है
अपनी बदहाल सूरत,
ख्वाब में आती
है
तब उसके सुंदर
मूरत,
हताशा और तनाव
कभी मनोबल नहीं
बढ़ाते
आत्मविश्वास की
कमी से
आदमी चीखकर
शब्द बोलता है।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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