Monday, November 10, 2014

दो नंबर की कमाई की चमक-हिन्दी कविता(do nambar ki kamai ki chamak-hindi kavita)



आर्थिक विकास के साथ
पीछे से अपराधी
विनाश के दौर भी लाते हैं।

कोई नहीं जानता
धनी अपराध करके
या अपराधी व्यापार कर
माया के शिखर पर चढ़ जाते हैं,
माला पहन लेते फूलों की
उनके चेहरे और आचरण
नारों के बीच खो जाते हैं।

कहें दीपक बापू सत्य की शक्ति से
जीता जा सकता है संसार
मगर महल नहीं बना पाते,
एक नंबर की कमाई से
पेट भी  मुश्किल से भर पाते,
भ्रष्टाचार हो या बेईमान
आभूषण की तरह
दो नंबर की कमाई में
सितारे जोड़ जाते हैं।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
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