Wednesday, May 08, 2019

शब्द अर्थ समझें नहीं अभद्र बोलते हैं-दीपकबापूवाणी (shabd arth samajhen nahin abhardra bolte hain-Deepakbapuwani)

एकांत में तस्वीरों से ही दिल बहलायें, भीड़ में तस्वीर जैसा इंसान कहां पायें।
‘दीपकबापू’ जीवन की चाल टेढ़ी कभी सपाट, राह दुर्गम भाग्य जो सुगम पायें।।
---
समाज सेवकों को समस्या न बताईये, सेवा में माहिर हैं बस चंदा चाहिये।
‘दीपकबापू’ ज्ञानी भटकते कमाने के लिये, धर्म का अर्थ पूछकर न सताईये।।
----
अमीर बने मदारी राजा नाचें जैसे बंदर, बाहर गरीब की जय कुसी पुजती अंदर।
लोकतंत्र में चले गाली चले गोली जैसे, ‘दीपकबापू’ भाषा का देखें गंदा समंदर।।
----
निमंत्रण भेजो तो घर पर आयेंगे, वरना मित्र भी मुंह फेर जायेंगे।
‘दीपकबापू’ औपचारिक बंधन डाले गले में, कैसे संबंध निभायेंगे।।
----
यहां चिंतायें बेचने का भी होता व्यापार, हल करने के सूत्र थमा देते हैं यार।
‘दीपकबापू’ अपनी जंग आप ही लड़ते, अक्लमंदों ने किया मसला तार तार।।
--
स्वार्थ न हो तो कौन किसकों पूछता है, अर्थ न हो तो कौन पहेली बूझता है।
‘दीपकबापू’ सुख के दिन बैठे बिठाये बिता देते, दुःख न हो तो कौन जूझता है।।
----
शब्द अर्थ समझें नहीं अभद्र बोलते हैं, भाव के अज्ञानी असर दाम में तोलते हैं।
‘दीपकबापू’ विज्ञापन से बन रहे महापुरुष, नारकीय दिखते जब मुंह खोलते हैं।
------
अंकों के खेल में शब्द के अर्थ खो दिये, हृदय में जोड़गुणा के भाव बो दिये।
‘दीपकबापू’ पेट भरा फिर भी खाली पाया, धन खाता जब देखा तब रो दिये।।
---
लघु चरित्र वाले बड़े बन गये लोग, परहित में लुट सुविधाओं पाल रहे देह में रोग।
‘दीपकबापू’ गंदे शब्दों से सजाई अपनी भाषा, भद्र सिंहासन पर बैठ सुख रहे भोग।।
----
गंतव्य की तरफ सब पथिक चलते, मिले कहीं धुप्प अंधेरा कहीं ढेर चिराग जलते।
जिंदगी के हर पल रंग रस बदलते, ‘दीपकबापू’ देखें सुबह सूरज उगते शाम ढलते।।

No comments:

समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

लोकप्रिय पत्रिकाएँ

विशिष्ट पत्रिकाएँ