Wednesday, January 21, 2015

दलालों के सपने-हिन्दी कविता(dalalon ke sapane-hindi poem)



विज्ञापन  युग में
हर वाक्य में एक ही दावा
ऋण से मालामाल बना देंगे।

नहीं जानते लोग
ब्याज और कमीशन से
अपने घर दलाल बना लेंगे।

कहें दीपक बापू ऋण की राह पर
चला जो कभी एक बार,
बंधक हो जाता जिंदगी के लिये
उसका पूरा घरबार,
मनुष्य का आत्मसम्मान
अपनी जरूरतों से
कम नहीं होता,
चादर जितने पांव
फैलाने वाला
कभी नहीं रोता,
अपनी अक्ल बंद कर दी अगर
यकीन करो
सौदागर तुम्हारे इर्दगिर्द
सपनों का जाल बना देंगे।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
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