Monday, June 08, 2015

सत्य की कला-हिन्दी कविता(satya ka kala-hindi poem)

संवेदनहीन वातावरण में भी
मुरझाते भावनाओं के वृक्ष में
बहार लाना जरूरी है।

मनुष्यों के मस्तिष्क पर
छाया है स्वार्थ
सभी के हृदय में स्पंदन का
हाल जानना जरूरी है।

कहें दीपक बापू आशा पर
आकाश टिका है,
निराश नहीं होते हम
चाहे अपने घर का प्रकाश
काला बाजार में बिका है,
माया हर दौर में
रूप बदल देती है
पहचान के लिये साथ में
सत्य की कला रखना जरूरी है।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
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