Sunday, July 19, 2015

देसी अर्थशास्त्र ही असली-हिन्दी व्यंग्य लेख(desi arthshastra-hindi satire article)

        आधुनिक अर्थशास्त्र में मांग और आपूर्ति  तथा उपयोगिता हृास का सिद्धांत या नियम एक बड़ी खोज मानी जाती है पर हमारी दृष्टि से तो यह इतने साधारण नियम है कि इसे हर भारतीय अपने ढंग से स्वतः ही जानता है। बहरहाल हमारे हिसाब से विश्व में दो अर्थशास्त्र हैं-एक कौटिल्य का अर्थशास्त्र दूसरा आधुनिक अर्थशास्त्र जिसका जनक पश्चिमी विद्वान एडमस्मिथ को माना जाता है। एडमस्मिथ वाले अर्थशास्त्र का हमने शैक्षणिक काल के दौरान रट्टा लगाया  तो कौटिल्य अर्थशास्त्र का अध्ययन अंतर्जाल पर सक्रिय होने के बाद किया।  इस पर लिखते लिखते हमें लगने लगा कि कौटिल्य और एडमस्मिथ दोनों में से किसी एक की रचना अर्थशास्त्र नहीं है।  करत करत अभ्यास मूरख भये सुजान वाली कहावत चरितार्थ हुई।  अब हमें कौटिल्य की रचना अर्थशास्त्र और एडमस्मिथ की रचना व्यवसाय या बाज़ार शास्त्र नज़र आती है।
                              आधुनिक अर्थशास्त्र में अनेक नोबल विजेता हुए हैं-उनकी खोज क्या है आज तक पता नहीं चला पर इतना तय है कि इनमें से कोई भी कौटिल्य के सिद्धांतों तक नहीं पहुंच पाया। दूसरी समस्या यह है कि अनेक लोगों ने अर्थशास्त्र के ज्ञाता होने के नाते अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कार और पद पाये पर एक भी देश या समाज का उद्धार करने वाला सिद्धांत बता पाये इसका इतिहास भी नहीं मिलता।  इसके बावजूद उनको अगर व्यवसाय या बाज़ार शास्त्री कहा जाये तो उनके समर्थकों को बुरा लग सकता है। भारत में पाश्चात्य आर्थिक विचारधारा के समर्थक विद्वान नाखुश हो सकते हैं-खासतौर से वह लोग जो पश्चिमी सिद्धांतों को भारत पर लादना चाहते हैं।
                              हमारे देश में भी अनेक अर्थशास्त्री प्रतिष्ठित हैं पर उन्हें कौटिल्य के सिद्धांतों का ज्ञान हो-ऐसा लगता नहीं है। तब उन्हें बाज़ार विशेषज्ञ ही  कहा जाना चाहिये। खासतौर से जब वह आर्थिक संस्थाओं के मार्ग दर्शक बनते हैं पर वह राजधर्म और उसके निर्वहन के सिद्धांतों की चर्चा नहीं कर पाते, जनता पर अधिक से अधिक और नये कर लादने की वकालत करते हैं तथा  महंगाई को विकास मानते हैं तब उनकी योग्यता पर प्रश्न चिन्ह तो लगता ही है प्रतिभा भी संदिग्ध हो जाती है।  उन्हें अर्थशास्त्री कहने की बजाय बाज़ार शास्त्री कहना ही हमें ठीक लगता है। कम से कम टीवी पर बहसों पर आने वाले अर्थशास्त्रियों को देखकर हमारी यही राय बनती है।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
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