हमारे देश में अक्सर भ्रष्टाचार पर तमाम तरह की गर्मागर्म बहसें होती हैं
पर नतीजा अभी तक सिफर रहा है। मनुस्मृति में कहा गया है कि राजकीय प्रबंध से जुड़े
कर्मचारियों में राजस्व से प्राप्त राशि का हरण करने की प्रवृत्ति रहती ही है।
श्रीमद्भागवत गीता में भी कहा गया है कि राजसी कर्म में लिप्त लोगों में काम, क्रोध, लोभ, मोह तथा अहंकार के गुण
स्वाभाविक रूप से होते हैं। हमारे देश में समाज और धर्म के अनुसार अनाधिकृत धन
प्राप्त करना पाप है पर सवाल यह है कि इसके बावजूद देश में भ्रष्टाचार क्यों
व्याप्त है?
इसका कारण यह है कि ज्ञान होना और उसे धारण कर जीवन पथ पर चलकर दिखाना अलग अलग विषय है। हम अपने देश में अनेक ऐसे लोगों
को ज्ञानी मान लेते हैं जो केवल किताबों से शब्दा को वाचन करने लगते हैं। उनके
आचरण पर कभी हमारी दृष्टि नहीं जाती।
राजसी कर्म का आशय केवल राजकीय कर्म से नहीं वरन् व्यापार, कला तथा सेवा में
अर्थोपार्जन के लिये लिप्त होना भी राजसी कर्म कहलाता है। सीधी बात कहें कि अर्थ
की नीयत से किया गया काम राजसी है। ऐसे
में जब व्यापार, कला तथा सेवा में
श्रेष्ठ स्थिति मिलने पर मनुष्यपांचों गुणों का शिकार हो जाता है तो राजकीय
क्षेत्र में उच्च स्थिति में आने पर उसे उससे त्याग की आशा ही करना व्यर्थ
है। अलबत्ता राजधर्म का मर्म जानने वाले
कभी काम, क्रोध, मोह, लोभ तथा अहकार का शिकार नहीं होते पर जो होते हैं उन्हें भी दोष नहीं दिया
जा सकता है। शायद यही कारण है कि हमारे यहां ज्ञान, तप और योग साधना में लगे लोग कभी भी राजकीय
कर्म में श्रेष्ठ स्थिति प्राप्त करने का प्रयास नहीं करते।
इस संसार में सर्वशक्तिमान के बाद श्रेष्ठता के क्रमा में राजपद आता
है। जिन्हें अध्यात्म का ज्ञान है वह
राजपद पर बैठकर अपना धर्म स्वाभाविक रूप से निभाते हैं। जिन्हें केवल पद पर बैठने
से मतलब है उनसे सदाशयता की आशा करना ही व्यर्थ है। हम देश की वर्तमान की स्थिति पर विलाप तथा
भविष्य की आशंकाओं में फंसकर अपना समय ही नष्ट करते हैं।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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