Monday, August 31, 2015

महंगी हो जाती जब सांसे-हिन्दी कविता(mahangi ho jati jab sansen-hindi poem's)


 महंगाई का पहिया
समाज के विश्वास को
रौंदे जा रहा है।

कौन है जो ज़माने की
मेहनत के दाम छीनकर
अपने घरौंदे बना रहा है।

कहें दीपकबापू जिंदगी में
महंगी हो जाती सांसें जब
इंसान की सोच सिमट जाती तब
पसीने से महल बनाने वाला
टूटे आशियानों क्यों रहता
यह प्रश्न कौंधे जा रहा है।
.............................
अपनी कामयाबी से कम
दूसरे के दिल जलने पर
गर्व लोग जताते हैं।
कहें दीपकबापू इतिहास गवाह
पुराने नायकों की पूजा में
खलनायक का पुतला जलाते हैं।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
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