Saturday, October 10, 2015

शायद यही विकास है-हिन्दी कविता(Shayad yahi Vikas hai-Hindi Kavita)


वातानुकूलित कक्ष में
मद्धिम प्रकाश के बीच
टेबलों पर जाम टकराते
लोग बिखेरते कृत्रिम रुआंसी हसंी
शायद यही विकास है।

सड़क पर धूंआ फैलाते
जोर की घ्वनि बजाते
आधुनिक चौपाये जाम लगाये हैं
शायद यही विकास है।

दूरसंदेश चलित यंत्र
हाथ में थामे जवां दिल
इश्क में उद्यमी की तरह व्यस्त
मगर रोजगार से पस्त
शायद यही विकास है।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
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