Saturday, December 26, 2015

दर्द की धारा-हिन्दी कविता(Dard Ki Dhara-Hindi Kavita)


भाषा के अज्ञानी
बोलने से अच्छा
वह मौन रहें।

अपने दर्द पर
चिल्लाने से अच्छा है
वह उसे सहें।

कहें दीपकबापू सांसे लेते हुए
सभी लोग चेतन नहीं होते
जड़ता जिनकी आदत बन गयी
बेलगाम जुबान से
भटकायें अपना मकसद
उससे अच्छा
दर्द की धारा में बहें।
-----------
लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका

४.दीपकबापू कहिन
5.हिन्दी पत्रिका 
६.ईपत्रिका 
७.जागरण पत्रिका 
९.शब्द पत्रिका

No comments:

Post a Comment

अपनी प्रतिक्रिया दें