Wednesday, December 16, 2015

संघर्ष की विरासत-हिन्दी कविता(Samgharsh Ki Virasat-Hindi Kavita)


सभी ने जागते हुए
अपनी आंखों में
सपने संभाल रखे हैं

श्रम किये बिना
चढ़ जायें शिखर पर
ऐसे विचार पाल रखे हैं।

कहें दीपकबापू संघर्ष से
जिनका रोज का नाता है
सिंहासन पाने की
चाहत नहीं करते
जिन्हें मिली दौलत की विरासत
पाप का माल वही रखे हैं।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
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