ज़माना पूरा दर्द में डूबा है,
सच्चा हमदर्द कहां मिलेगा।
कहें दीपकबापू घन के पीछे सब
प्यार में इंतजार में कौन मिलेगा।
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सड़कों पर फैला धुंआ काला
नाक में बना दुर्गंध का जाला।
कहें दीपकबापू विकास का पथ है
नकली फूल असली कांटों वाला।
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किसी का दिल नहीं दरिया
शेर जैसे कोई नहीं जिया।
कहें दीपकबापू स्वार्थी इंसान
कभी भक्ति रस नहीं पिया।
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नियम कभी माने नहीं
संयम का अर्थ जाने नहीं।
कहें दीपकबापू स्वयंभू संत या सेवक
ज्ञान मार्ग पर चलना जाने नहीं।
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कोई दूसरा बताये जो ख्वाब
हम अपने दिल पर क्यों लेते हैं।
कहें दीपकबापू अपने अंदर के
जज़्बात पराये जैसा क्यों लेते हैं।
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गले में काम के बंधन डाले
आवारा जिंदगी का सपना देखते।
कहें दीपकबापू दिल से यायावर
हर पराये में भी अपना देखते।।
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