Saturday, July 04, 2009

सिंधी भाषा का लिपि विवाद खत्म करना होगा-आलेख

भारतीय भाषाओं में सिंधी भाषा का भी अग्रणी स्थान रहा है पर किसी एक प्रदेश की भाषा न होने के कारण अब लुप्तप्रायः होती जा रही है। सिंधी भाषा बोलने वाले अधिकतर पाकिस्तान और भारत में ही हैं। दोनों ही देशों में अनेक लोगों की मातृभाषा होने के कारण सिंधी अस्तित्व बचाने के लिये जूझ रही है। अगर हम देखें तो भाषा के कारण ही सिंधी समाज एक जाति के रूप में अस्तित्व कायम रख पाया है पर सरकारी और गैरसरकारी समर्थन मिलने के बावजूद इस समाज ने अपनी भाषा को बचाने का अधिक प्रयास नहीं किया। कुछ सिंधी भाषी लेखकों ने अपने स्तर पर सिंधी में लिखने का प्रयास किया पर सामाजिक समर्थन न मिलने से उनका अभियान अधिक नहीं चल पाया।
सच बात तो यह है कि अंग्रेजी ने जिस तरह हिंदी भाषा को नुक्सान पहुंचाया उतना ही सिंधी भाषा को भी पहुंचाया। सिंधी समाज के लोग अपने बच्चों के लिये सिंधी भाषा की उपयोगिता नहीं समझते हालांकि इसकी वजह से उनकी पहचान खत्म होती जा रही है। दरअसल सिंधी समाज इस कारण भी अपने भाषा के प्रति उदासीन होता गया क्योंकि उसके विद्वान हमेशा ही लिपि को लेकर उलझे रहे। जब यह भाषा लगभग समाप्त प्रायः हो रही है तब भी इस पर विवाद बने रहना आश्चर्य की बात है।
वैसे सिंधी समाज पूरी तरह से व्यवसायिक है इसलिये वह उसी भाषा का उपयोग करने के लिये प्रयत्नशील रहा है जो उसके लिये आय का साधन हो। इसके बावजूद इस समाज के कुछ युवकों ने यह प्रयास किया कि सिंधी देवनागरी में लिखकर समाज के लिये कुछ काम किया जाये पर उनको अपने ही समाज के कर्णधारों का समर्थन नहीं मिला। इसके अलावा क्षेत्रवाद ने भी इस भाषा के लेखकों को अधिक प्रोत्साहन नहीं दिया। कुछ क्षेत्रों में सिंधी भाषा अभी भी देवनागरी के साथ अरेबिक लिपि में पढ़ाई जाती है और यह वह हैं जहां सिंधी समाज पूरी तरह से बसा हुआ है। सिंधी समाज के लोग चूंकि व्यवसायी हैं इसलिये उनकी बसाहट उन क्षेत्रों में भी है जहां वह कम हैं और जहां अधिक हैं तो भी अन्य समाज भी संख्या बल में उनसे बराबर हैं। वहां प्रादेशिक भाषाओं के साथ सिंधी समाज के विद्यार्थी अपनी शिक्षा प्राप्त करते हैं। अनेक सिंधी भाषी लेखकों ने हिंदी भाषा में अपना स्थान बना लिया है पर उनके द्वारा अपनी भाषा में लिखने का प्रयास विफल चला जाता है।
इधर अंतर्जाल पर सिंधी भाषा को लेकर कुछ उत्साहजनक संकेत मिले पर उनका सतत प्रवाह बना रहेगा इसमें संदेह है। इस समय अंतर्जाल पर हिंदी लिखने वाले अनेक लेखक सिंधी भाषी हैं और उन्होंने अच्छा मुकाम भी प्राप्त कर लिया है। उनमें से कुछ लेखकों ने सिंधी में लिखने का प्रयास किया है।
इस लेखक की प्राथमिक शिक्षा सिंधी देवनागरी विद्यालय में हुई थी। इसी कारण सिंधी देवनागरी में यहां भी एक ब्लाग बनाया। उसकी ठीकठाक प्रतिक्रिया हुई। मुश्किल लिपि की है पर आजकल उपलब्ध टूलों के कारण लाभ भी हुआ। देवनागरी से अरेबिक टूल से अनुवाद एक जानकार को पढ़ाया तो उससे लगा कि वह ठीक अनुवाद करता है पर अरेबिक से हिंदी में अनुवाद कोई ठीक नहीं है पर फिर भी पढ़ा जा सकता है। उस ब्लाग पर लिखते हुए पाकिस्तान के सिंधी ब्लाग लेखकों से कुछ समय तक संपर्क रहा पर फिर उस पर नहीं लिखा तो वह टूट गया। उस सिंधी भाषी ब्लाग पर अधिक सक्रियता यह लेखक नहीं दिखाता पर उनसे यह तो पता लग ही गया है कि अनेक सिंधी भाषी अंतर्जाल पर बहुत बढ़िया काम कर रहे हैं और उनमें यह भी इच्छा है कि वह हिंदी के साथ सिंधी में भी काम करे पर उनका आपसी सामंजस्य नहीं बन पाता। एक ब्लाग लेखक ने यह प्रयास किया था कि उनका भी कोई फोरम बन जाये पर लिखने वालों की संख्या एक तो कम है फिर उनकी उदासीनता अभी भी बनी हुई है। इस लेखक के एक पाठ पर भारत के ही एक सिंधी पाठक ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि‘सिंधी भाषा को देवानागरी या रोमन लिपि में न लिखें क्योंकि अरेबिक लिपि उसकी जान है।’
इस लेखक ने उसे लिखा था कि‘अब इस तरह के विवाद का लाभ नहीं है। अगर हमें सिंधी भाषा में लिखना और पढ़ना है तो तीनों लिपियों के साथ चलना होगा। भाषा से अधिक कथन की तरफ अपना ध्यान देना होगा।’
यह टिप्पणी उसी क्षेत्र से की गयी थी जहां सिंधी अरेबिक लिपि में पढ़ाई जाती है हालांकि वहां अब छात्रों की संख्या अब बहुत कम हो गयी है और वह टिप्पणीकार कोई पुराने समय का विद्यार्थी रहा होगा।
सिंधियों को अपनी स्थिति पर विचार करना चाहिये। यहां एक सिंधी विद्वान का कथन याद आता है जो अक्सर अपने समाज के लोगों से प्रश्न करते हैं। वह कहते हैं कि ‘हम किस आधार पर यह कहते हैं कि हम सिंधी हैं क्योंकि उसकी तो हमें भाषा ही नहीं आती। देश में सामाजिक व्यवस्था ऐसी है कि समाज पूरी तरह से टूट नहीं सकता। ऐसे में जब आज से पचास वर्ष बाद जब कोई सिंधी परिवार का पिता अपनी बेटी या बेटे का रिश्ता लेकर किसी दूसरे के यहां जायेगा तो क्या कहेगा कि‘आपके और हमारे पूर्वज सिंधी थे इसलिये आपके यहां रिश्ता करने आये हैं। तब वह कौनसा प्रमाण लायेगा कि वह सिंधी है।’
दो भाषाओं का ज्ञान कठिन या अनावश्यक है यह कहना ही निरर्थक है। अनेक सिंधी परिवारों के लेखक हिंदी में लिख रहे हैं तो सिंधी देवानागरी में लिखने का प्रयास करते हैं। ऐसे में उनको समाज से समर्थन न मिलना उनके साथ ही समाज के अन्य लोगों के लिये परेशानी का कारण बन सकता है जब यह समाज अपनी भाषाई पहचान खो बैठेगा जो कि इसका आधार है। इस लेखक का तो यह भी कहना है कि केवल सिंधी ही भाषी ही नहीं बल्कि अन्य भाषी लोग भी अपनी निज भाषायें बचाने का प्रयास करें क्योंकि यही हिंदी की ताकत है कि वह विभिन्न भाषाओं को अपने साथ संजोये रख सकती है। वैसे भी लिपि विवाद अनुवाद टूलों के कारण अर्थहीन होता चला जा रहा है। भले ही अरेबिक लिपि से देवनागरी लिपि में अनुवाद अधिक शुद्ध नहीं है पर पाठों का भाव तो समझ में आ ही जाता है।
.........................................
लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकाएं भी हैं। वह अवश्य पढ़ें।
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका
4.अनंत शब्दयोग
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप

No comments:

समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

लोकप्रिय पत्रिकाएँ

विशिष्ट पत्रिकाएँ