Sunday, April 25, 2010

गरीब देश की पहचान मिटाने का विकल्प-हिन्दी व्यंग्य कविताऐं (gareeb desh ki pahachan mitane ka sankalp-hindi vyangya kavitaen)

देश की गरीबी ऐसी पहेली है
जिसे वह बूझ रहे हैं।
इसलिये वह बना रहे हैं नये राजा महाराजा,
बजायेंगे शराब पीकर और जुआ खेलकर
जो दुनियां के सामने तरक्की का बाजा,
उनके रहने के वास्ते
मशहूर जगहों पर
महल बनाने की तैयारी में
गरीबों को अपनी झौंपड़ियों समेत
दूरदराज इलाके में
खदेड़ने के लिये जूझ रहे हैं।
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देश की गरीबी मिटाने के लिये
उन्होंने लिया है संकल्प,
इसलिये चुना है गरीब को उजाड़कर
अमीर को चौराहे पर बसाने का विकल्प।
गरीब जनसंख्या में ज्यादा है, कहां तक उनको बचायेंगे,
फिर अहसान मानने के अलावा
वह भला किस काम आयेंगे,
जिनके महल बनने से शहर चमके
रहेगी देश की पहचान अमीर बनके,
जो चढ़ावें हर सौदे पर चढ़ावा,
मुफ्त में काम करने का न होने देते पछतावा,
सभी समाजसेवकों की है
ऐसे अमीरों के साथ की चाहत
जो संख्या में हों भले ही होते अल्प।
क्योंकि वही हैं गरीब देश की
पहचान मिटाने का विकल्प।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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