अंततः बाबा रामदेव के निकटतम चेले ने अपनी हल्केपन का परिचय दे ही दिया जब वह दिल्ली में रामलीला मैदान में चल रहे आंदोलन के लिये पैसा उगाहने का काम करता सबके सामने दिखा। जब वह दिल्ली में आंदोलन कर रहे हैं तो न केवल उनको बल्कि उनके उस चेले को भी केवल आंदोलन के विषयों पर ही ध्यान केंद्रित करते दिखना था। यह चेला उनका पुराना साथी है और कहना चाहिए कि पर्दे के पीछे उसका बहुत बड़ा खेल है।
उसके पैसे उगाही का कार्यक्रम टीवी पर दिखा। मंच के पीछे भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम का पोस्टर लटकाकर लाखों रुपये का चंदा देने वालों से पैसा ले रहा था। वह कह रहा था कि ‘हमें और पैसा चाहिए। वैसे जितना मिल गया उतना ही बहुत है। मैं तो यहां आया ही इसलिये था। अब मैं जाकर बाबा से कहता हूं कि आप अपना काम करते रहिये इधर मैं संभाल लूंगा।’’
आस्थावान लोगों को हिलाने के यह दृश्य बहुत दर्दनाक था। वैसे वह चेला उनके आश्रम का व्यवसायिक कार्यक्रम ही देखता है और इधर दिल्ली में उसके आने से यह बात साफ लगी कि वह यहां भी प्रबंध करने आया है मगर उसके यह पैसा बटोरने का काम कहीं से भी इन हालातों में उपयुक्त नहीं लगता। उसके चेहरे और वाणी से ऐसा लगा कि उसे अभियान के विषयों से कम पैसे उगाहने में अधिक दिलचस्पी है।
जहां तक बाबा रामदेव का प्रश्न है तो वह योग शिक्षा के लिये जाने जाते हैं और अब तक उनका चेहरा ही टीवी पर दिखता रहा ठीक था पर जब ऐसे महत्वपूर्ण अभियान चलते हैं कि तब उनके साथ सहयोगियों का दिखना आवश्यक था। ऐसा लगने लगा कि कि बाबा रामदेव ने सारे अभियानों का ठेका अपने चेहरे के साथ ही चलाने का फैसला किया है ताकि उनके सहयोगी आसानी से पैसा बटोर सकें जबकि होना यह चाहिए कि इस समय उनके सहयोगियों को भी उनकी तरह प्रभावी व्यक्तित्व का स्वामी दिखना चाहिए था।
अब इस आंदोलन के दौरान पैसे की आवश्यकता और उसकी वसूली के औचित्य की की बात भी कर लें। बाबा रामदेव ने स्वयं बताया था कि उनको 10 करोड़ भक्तों ने 11 अरब रुपये प्रदान किये हैं। एक अनुमान के अनुसार दिल्ली आंदोलन में 18 करोड़ रुपये खर्च आयेगा। अगर बाबा रामदेव का अभियान एकदम नया होता या उनका संगठन उसको वहन करने की स्थिति में न होता तब इस तरह चंदा वसूली करना ठीक लगता पर जब बाबा स्वयं ही यह बता चुके है कि उनके पास भक्तों का धन है तब ऐसे समय में यह वसूली उनकी छवि खराब कर सकती है। राजा शांति के समय कर वसूलते हैं पर युद्ध के समय वह अपना पूरा ध्यान उधर ही लगाते हैं। इतने बड़े अभियान के दौरान बाबा रामदेव का एक महत्वपूर्ण और विश्वसीनय सहयोगी अगर आंदोलन छोड़कर चंदा बटोरने चला जाये और वहां चतुर मुनीम की भूमिका करता दिखे तो संभव है कि अनेक लोग अपने मन में संदेह पालने लगें।
संभव है कि पैसे को लेकर उठ रहे बवाल को थामने के लिये इस तरह का आयोजन किया गया हो जैसे कि विरोधियों को लगे कि भक्त पैसा दे रहे हैं पर इसके आशय उल्टे भी लिये जा सकते हैं। यह चालाकी बाबा रामदेव के अभियान की छवि न खराब कर सकती है बल्कि धन की दृष्टि से कमजोर लोगों का उनसे दूर भी ले जा सकती है जबकि आंदोलनों और अभियानों में उनकी सक्रिय भागीदारी ही सफलता दिलाती है। बहरहाल बाबा रामदेव के आंदोलन पर शायद बहुत कुछ लिखना पड़े क्योंकि जिस तरह के दृश्य सामने आ रहे हैं वह इसके लिये प्रेरित करते हैं। हम न तो आंदोलन के समर्थक हैं न विरोधी पर योग साधक होने के कारण इसमें दिलचस्पी है क्योंकि अंततः बाबा रामदेव का भारतीय अध्यात्म जगत में एक योगी के रूप में दर्ज हो गया है जो माया के बंधन में नहीं बंधते।
उसके पैसे उगाही का कार्यक्रम टीवी पर दिखा। मंच के पीछे भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम का पोस्टर लटकाकर लाखों रुपये का चंदा देने वालों से पैसा ले रहा था। वह कह रहा था कि ‘हमें और पैसा चाहिए। वैसे जितना मिल गया उतना ही बहुत है। मैं तो यहां आया ही इसलिये था। अब मैं जाकर बाबा से कहता हूं कि आप अपना काम करते रहिये इधर मैं संभाल लूंगा।’’
आस्थावान लोगों को हिलाने के यह दृश्य बहुत दर्दनाक था। वैसे वह चेला उनके आश्रम का व्यवसायिक कार्यक्रम ही देखता है और इधर दिल्ली में उसके आने से यह बात साफ लगी कि वह यहां भी प्रबंध करने आया है मगर उसके यह पैसा बटोरने का काम कहीं से भी इन हालातों में उपयुक्त नहीं लगता। उसके चेहरे और वाणी से ऐसा लगा कि उसे अभियान के विषयों से कम पैसे उगाहने में अधिक दिलचस्पी है।
जहां तक बाबा रामदेव का प्रश्न है तो वह योग शिक्षा के लिये जाने जाते हैं और अब तक उनका चेहरा ही टीवी पर दिखता रहा ठीक था पर जब ऐसे महत्वपूर्ण अभियान चलते हैं कि तब उनके साथ सहयोगियों का दिखना आवश्यक था। ऐसा लगने लगा कि कि बाबा रामदेव ने सारे अभियानों का ठेका अपने चेहरे के साथ ही चलाने का फैसला किया है ताकि उनके सहयोगी आसानी से पैसा बटोर सकें जबकि होना यह चाहिए कि इस समय उनके सहयोगियों को भी उनकी तरह प्रभावी व्यक्तित्व का स्वामी दिखना चाहिए था।
अब इस आंदोलन के दौरान पैसे की आवश्यकता और उसकी वसूली के औचित्य की की बात भी कर लें। बाबा रामदेव ने स्वयं बताया था कि उनको 10 करोड़ भक्तों ने 11 अरब रुपये प्रदान किये हैं। एक अनुमान के अनुसार दिल्ली आंदोलन में 18 करोड़ रुपये खर्च आयेगा। अगर बाबा रामदेव का अभियान एकदम नया होता या उनका संगठन उसको वहन करने की स्थिति में न होता तब इस तरह चंदा वसूली करना ठीक लगता पर जब बाबा स्वयं ही यह बता चुके है कि उनके पास भक्तों का धन है तब ऐसे समय में यह वसूली उनकी छवि खराब कर सकती है। राजा शांति के समय कर वसूलते हैं पर युद्ध के समय वह अपना पूरा ध्यान उधर ही लगाते हैं। इतने बड़े अभियान के दौरान बाबा रामदेव का एक महत्वपूर्ण और विश्वसीनय सहयोगी अगर आंदोलन छोड़कर चंदा बटोरने चला जाये और वहां चतुर मुनीम की भूमिका करता दिखे तो संभव है कि अनेक लोग अपने मन में संदेह पालने लगें।
संभव है कि पैसे को लेकर उठ रहे बवाल को थामने के लिये इस तरह का आयोजन किया गया हो जैसे कि विरोधियों को लगे कि भक्त पैसा दे रहे हैं पर इसके आशय उल्टे भी लिये जा सकते हैं। यह चालाकी बाबा रामदेव के अभियान की छवि न खराब कर सकती है बल्कि धन की दृष्टि से कमजोर लोगों का उनसे दूर भी ले जा सकती है जबकि आंदोलनों और अभियानों में उनकी सक्रिय भागीदारी ही सफलता दिलाती है। बहरहाल बाबा रामदेव के आंदोलन पर शायद बहुत कुछ लिखना पड़े क्योंकि जिस तरह के दृश्य सामने आ रहे हैं वह इसके लिये प्रेरित करते हैं। हम न तो आंदोलन के समर्थक हैं न विरोधी पर योग साधक होने के कारण इसमें दिलचस्पी है क्योंकि अंततः बाबा रामदेव का भारतीय अध्यात्म जगत में एक योगी के रूप में दर्ज हो गया है जो माया के बंधन में नहीं बंधते।
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