चांद पर भी कहीं न कहीं दाग है,
समंदर में भी कहीं न कहीं आग है।
ऊपर और नीचे होता खेल कुदरत का है
इंसान गाता मुख से अपना ही राग है।
शिष्टाचार बैठा है सोने के तख्त पर
सजावट में भ्रष्टाचार का पूरा भाग है।
कहें दीपक बापू दिखते सभी यहां इंसान
पर उनमें भी कोई भेड़िया कोई नाग है।
----------------
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
४.दीपकबापू कहिन
5.हिन्दी पत्रिका
६.ईपत्रिका
७.जागरण पत्रिका
८.हिन्दी सरिता पत्रिका
९.शब्द पत्रिका
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
४.दीपकबापू कहिन
5.हिन्दी पत्रिका
६.ईपत्रिका
७.जागरण पत्रिका
८.हिन्दी सरिता पत्रिका
९.शब्द पत्रिका
No comments:
Post a Comment